वेदों, स्मृतियों, पुराणादि धर्मशास्त्रों एवं फलित ज्योतिष शास्त्रों तथा धर्मसिन्धु में शुभ-अशुभ शकुनों के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई है। शकुन हेतु तुलसीकृत ‘रामाज्ञा-प्रश्न’ एवं ‘रामशलाका’ भी प्रसिद्ध हैं। शकुन के संबंध में प्रसिद्ध ग्रंथ वसंतराज शाकुन का कथन है- ‘शुभाशुभज्ञानविनिर्णयाय हेतुर्नणां यः शकुन’ अर्थात् जिन चिह्नों को देखने से ‘शुभ-अशुभ’ का ज्ञान हो वह शकुन है। जिस चिह्न संकेत निमित्त द्वारा शुभ जानकारी मिले, वह शुभ शकुन और अशुभ जानकारी मिले, उसे अपशकुन कहते हैं।

Shagun Apshagun Kya Hota Hai Aur Iski Manyata Kyon Hai
Shagun Apshagun Kya Hota Hai Aur Iski Manyata Kyon Hai

भगवान् राम की बारात चढ़ने के समय शकुन होने से मंगल हुआ, ऐसा रामायण में उल्लेख मिलता है-

दाहिन काय सुखेत सुहावा। नकुल दरसु सब काहूं पावा ॥
सानुकूल बह त्रिविध बयारी। सघट सबाल आव बर नारी ॥
लोवा फिरि फिरि दरसु देखावा । सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा ॥
मृगमाला फिरि दाहिनि आई। मंगल गन जनु दीन्हि देखाई ॥
छेमकरी कह छेम बिसेषी। स्यामा बाम सुतरु पर देखी ॥
सनमुख आयउ दधि अरु मीना। कर पुस्तक दुइ बिप्र प्रबीना ॥
– रामचरितमानस बालकांड 302/2-4

ऐसा माना जाता है कि ये संकेत ही शुभाशुभ का ज्ञान कराकर भविष्य की घटनाओं का निर्धारण करते हैं। वास्तव में अच्छी या बुरी घटनाओं की पुनरावृत्ति ही इन विश्वासों की जड़ में होती है। फलित ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में यात्रा हेतु या घर से बाहर निकलते समय शकुन विचार करने का बड़ा महत्त्व बताया गया है। शुभ शकुन के कुछ संकेत इस प्रकार हैं-ब्राह्मण, गाय, भरा हुआ कलश, शंख, उसकी ध्वनि, वेद पाठ की ध्वनि, कन्या, मोर, नेवला, सफेद बैल, गन्ना, सौभाग्यवती स्त्री, सिर या हाथ में गोबर लाते हुए, पालकी, धनुष, चक्र, मधुर कर्णप्रिय संगीत, कमल, फूल, मंदिर/धर्मस्थल, सफेद वस्त्र, हाथी, घोड़ा, स्वर्ण के आभूषण, घी, शहद, दूध, दही, चावल, पका अन्न, चंदन से भरी कटोरी, व्यंजन, रुदन रहित शवयात्रा, मांस लिए हुए आना, भारी रजाई लादे हुए दिखना, बालक का हंसते-खेलते हुए आना, निर्मल आकाश, खेत में लगा हुआ अन्न आदि।

अपशकुन के लोक प्रचलित संकेत इस प्रकार हैं-रात्रि में तारे का टूटना देखना, भीगे वस्त्रों में स्त्री का दिखना, बिल्ली का रास्ता काटना, किसी का छींक देना, कौवे का दोपहर में बोलना, रुई, कीचड़, चमड़ा, राख, फूटा हुआ बर्तन, हड्डी, सूखी लकड़ी, तेल, गुड़, साबुन, उड़द, ठोकर लगना, पैर फिसलना, कपड़े का किसी चीज में उलझना, कुत्ते का रोना, काना, तेली दिखना, बिल्लियों को लड़ते देखना आदि।

उल्लेखनीय है कि किसी काम की सफलता के लिए मन में उत्साह, आशा, धैर्य और पूर्ण आत्मविश्वास होना ही चाहिए। इसमें कमी आने से अपेक्षित एकाग्रता, श्रमशीलता एवं तत्परता घट जाएगी। परिणामस्वरूप सफलता की संभावना में भी कमी आएगी। शुभ-अशुभ शकुनों में विश्वास करने में यही सबसे बड़ा नुकसान है कि मन अकारण ही आशंकित और आतंकित हो जाता है, जिससे असफलता के बीज पनपने लगते हैं और भली प्रकार प्रयास न कर पाने के कारण सफलता नहीं मिलती। स्मरणीय है कि अपशकुन हमें तभी याद आते हैं, जब हमको किसी कार्य में असफलता मिलती है। कार्य में सफलता मिलने पर पूर्व में देखा गया अपशकुन भी कोई मायने नहीं रखता। स्पष्ट है कि सफलता या असफलता का मिलना हमारी योग्यता या अयोग्यता का ही परिचायक है। हिन्दुओं में आज तक पुरुष के दाहिने और स्त्रियों के बाएं अंग फड़कने को शकुन मानते हैं और पुरुष के बाएं और स्त्रियों के दाएं अंग फड़कने को अपशकुन समझते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि नाड़ियों में रक्तप्रवाह के कारण ही अंगों में फड़कन महसूस होती है, जिसका किसी शकुन अपशकुन के साथ कोई संबंध नहीं होता। छींक आना शरीर-विज्ञान के मतानुसार एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो श्वास नली में अवरोध आने पर उत्पन्न होती है, जिसके परिणामस्वरूप आया अवरोध एकाएक दूर हो जाता है। इसके अलावा हानिकारक वायुमंडल के कण जय नाक के अंदर और श्वास नली में जमा होकर अवरोध पैदा करते हैं तो छींक रूपी प्राकृतिक उपाय से शरीर की रक्षा ही होती है। यदि यह हानिकारक गंदगी छींक के माध्यम से बाहर न हो तो मानसिक तनाव, चक्कर आना जैसे बुरे प्रभाव शरीर पर पड़ते हैं। इसलिए छींक आना स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद ही है।

इसी प्रकार आंख का फड़कना शुभ या अशुभ माना जाता है, जो शरीर विज्ञान के अनुसार रक्त की अनियमितता के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। रक्त प्रवाह में रुकावट और उसका दूर होना ही फड़कन का अनुभव देता है। इसलिए जहां तक हो सके, इन अपशकुनों के चक्कर में न पड़ें। कर्म में विश्वास करें।

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