वर-वधू को विवाह की रस्में पूर्ण हो जाने के पश्चात् अपने कर्तव्य धर्म का महत्त्व भली-भांति समझाने और उनका निष्ठा पूर्वक पालन कराने हेतु संकल्प के रूप में अलग-अलग प्रतिज्ञाएं कराई जाती हैं, जिनके पूरी होने पर स्वीकृति स्वरूप दोनों से ‘स्वीकार है’, कहलवाने की प्रथा है। विवाह संस्कार पद्धति के अनुसार, ये सब प्रतिज्ञाएं दांपत्य-जीवन को खुशहाल एवं दीर्घजीवी बनाए रखने के लिए कराई जाती हैं।

वर की प्रतिज्ञाएं।
1. मैं अपनी धर्म पत्नी को अर्धांगिनी यानी अपने शरीर का आधा अंग समझेंगा और आज से उसका उतना ही ध्यान रखूंगा, जितना अपने शरीर के अंगों का रखूंगा।
2. गृहलक्ष्मी का अधिकार पत्नी को सौंपकर उससे परामर्श करके ही जीवन की गतिविधियों और कार्यक्रमों की व्यवस्था करूंगा।
3. पत्नी में किसी प्रकार के दोष, विकारों के कारण असंतोष व्यक्त नहीं करूंगा और यदि कोई दोष होगा भी तो प्रेमपूर्वक उसे सुधारकर या सहन करते हुए आत्मीयता बनाए रखूंगा।
4. पत्नीव्रत का पालन पूरी निष्ठा के साथ करूंगा और परनारी पर बुरी नजर नहीं डालूंगा। न ही उससे संबंध जोडूंगा।
5. पत्नी को मित्रवत् रखूंगा और पूरा-पूरा स्नेह दूंगा।
6. अपनी आमदनी पत्नी को सौंपूंगा और गृह-व्यवस्था हेतु खर्च में उसकी सहमति लूंगा। उसकी सुख-सुविधाओं, प्रगति और प्रसन्नता के लिए प्रयत्नशील रहूंगा।
7. किसी के सामने पत्नी को लांछित, तिरस्कृत नहीं करूंगा। मतभेदों और भूलों का सुधार एकांत में बैठकर करूंगा।
8. पत्नी के प्रति सहिष्णुता एवं मधुरता का व्यवहार करूंगा। समझौता नीति का पालन करूंगा।
9. पत्नी के बीमार होने, असमर्थता की स्थिति, संतान न होने या जाने-अनजाने किसी गलत व्यवहार पर भी मैं अपने सहयोग और कर्तव्य पालन में कोई कमी नहीं लाऊंगा।
10. पत्नी के व्यक्तित्व विकास में पूरी शक्ति लगाऊंगा और उसके साथ मधुर प्रेमयुक्त चर्चा तथा सद्व्यवहार का पालन करूंगा।
वधू की प्रतिज्ञाएं।
1. मैं अपने पति के साथ अपना व्यक्तित्व मिलाकर, सच्चे अर्थों में अर्धांगिनी बनकर, नए जीवन की सृष्टि करूंगी।
2. पति के परिजनों से मधुरता, शिष्टता, उदारता पूर्वक व्यवहार कर उन्हें प्रसन्न और संतुष्ट रखने में कोई कमी नहीं होने दूंगी।
3. परिश्रम पूर्वक गृहसंचालन कर पति की प्रगति में सहायक बनूंगी और आलस्य को छोड़ दूंगी।
4. पति के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए, उनके अनुकूल रहूंगी और पातिव्रत्य धर्म का पालन करूंगी।
5. सेवा भावना, मधुर वचन बोलने, प्रसन्न रहने का स्वभाव बनाऊंगी। रूठने, कुढ़ने और ईर्ष्या के दुर्गुण नहीं अपनाऊंगी।
6. मितव्ययता से अपना घर चलाऊंगी और फिजूलखर्ची से बचूंगी।
7. पति से विमुख न होऊंगी। उन्हें परमेश्वर मानूंगी। उनका साथ न छोडूंगी। उनका कभी अपमान नहीं करूंगी।
8. पति से हुए मतभेदों का एकांत में निराकरण करूंगी। उन्हें निंदात्मक रूप से प्रस्तुत नहीं करूंगी।
9. पति को सेवा और विनय द्वारा सदैव संतुष्ट रखूंगी।
10. पति के मुझसे विमुख होने पर भी प्रतिफल की आशा किए बिना अपने कर्तव्य का निष्ठा पूर्वक पालन करूंगी।
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