Satsang aur katha pravachan sunne se kya hota hai?

हमारे देश का पौराणिक और धार्मिक कथा साहित्य बड़ा समृद्धिशाली है। ऋषि-मुनियों ने भारतीय ज्ञान, नीति, सत्य, प्रेम, न्याय, संयम, धर्म तथा उच्चकोटि के नैतिक सिद्धांतों को जनता तक पहुंचाने के लिए बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से अनेक प्रकार की धार्मिक कथाओं की रचना की है।

इनमें दुष्ट प्रवृत्तियों की हमेशा हार दिखाकर उन्हें छोड़ने की प्रेरणा दी गई है। इस प्रकार ये कथाएं हमें पाप बुद्धि से छुड़ाती हैं। हमारी नैतिक बुद्धि को जगाती हैं, जिससे मनुष्य सभ्य, सुसंस्कृत और पवित्र बनता है। भगवान् की कथा को भव-भेषज, सांसारिक कष्ट, पीड़ाओं और पतन से मुक्ति दिलाने वाली औषधि कहा जाता है। इसलिए कथा सुनने तथा सत्संग का बहुत महत्त्व है।

सत्संग और कथा प्रवचन सुनने का महत्त्व क्यों? ने कथा श्रवण एवं सत्संग के संबंध में कहा है-

प्रविष्टः कर्णरन्ध्रेण स्वानां भावसरोरुहम्। धुनोति शमलं कृष्णसलिलस्य यथा शरत् ॥
धौतात्मा पुरुषः कृष्णपादमूलं न कुंचति।
– श्रीमद्भागवत 2/8/5-6
नियमित कथा श्रवण एवं सत्संग से भगवान् अपने भक्तों के हृदय में विराजते हैं एवं उनके अंतःकरण के समस्त दोषों को धुन-धुन करके वैसे ही स्वच्छ कर देते हैं, जैसे शरद् ऋतु के आगमन से समस्त जलाशयों का जल स्वच्छ हो जाता है। इस प्रकार निर्मल चित्त भक्त भगवान् के श्रीचरणों को अपने हृदय में प्रेम-रज्जु से बांध लेता है।

वेदव्यास ने भागवत् की रचना इसलिए की, ताकि लोग कथा के द्वारा ईश्वर के आदर्श रूप को समझें और उसको अपनाकर जीवन लाभ उठाएं। भगवान् की कथा को आधिभौतिक, आधिदैविक एवं आध्यात्मिक तापों को काटने वाली कहा गया है। यानी इनका प्रभाव मृत्यु के बाद ही नहीं जीवन में भी दिखाई देने लगता है। सांसारिक सफलताओं से लेकर पारलौकिक उपलब्धियों तक उसकी गति बनी रहने से जीवन की दिशा ही बदल जाती है। पाप और पुण्य का सही स्वरूप भगवद्ङ्कथा से समझ में आता है। इसे अपना कर पापों का क्षय तथा पुण्यों की वृद्धि की जा सकती है। व्यक्ति अपने बंधनों को छोड़ने और तोड़ने में सफल हो जाता है तथा मुक्ति का अधिकारी बन जाता है। इसके अलावा कथा सुनने से जीवन की समस्याओं, कुंठाओं, विडंबनाओं का समाधान आसानी से मिल जाता है।

आत्मानुशासन 5 में कहा गया है कि जो बुद्धिमान् हो, जिसने समस्त शास्त्रों का रहस्य प्राप्त किया हो, लोक मर्यादा जिसके प्रकट हुई हो, कांतिमान हो, उपशमी हो, प्रश्न करने से पहले ही जिसने उत्तर देखा हो, बाहुल्यता से प्रश्नों को सहनेवाला हो, प्रभु हो, परकी तथा परके द्वारा अपनी निंदारहितपने से पर के मन को हरने वाला हो, गुणनिधान हो, स्पष्ट और मधुर जिसके वचन हों, ऐसा सभा का नायक धर्मकथा कहे।

स्कंदपुराण में सूतजी कहते हैं- ‘श्रीमद्भागवत का जो श्रवण करता है, वह अवश्य ही भगवान् के दर्शन करता है, किंतु कथा का श्रवण तथा पाठन श्रद्धा भक्ति, आस्था के साथ-साथ विधि पूर्वक होना चाहिए अन्यथा सुफल की प्राप्ति नहीं होती।’

श्रीमद्भागवत 5/19/24 में लिखा है कि जहां भगवत्कथा की अमृतमयी सरिता नहीं बहती, जहां उसके कहने वाले भक्त, साधुजन निवास नहीं करते वह चाहे ब्रह्मलोक ही क्यों न हो, उसका सेवन नहीं करना चाहिए।

धार्मिक कथा, प्रवचन आदि का माहात्म्य केवल उसके सुनने मात्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन पर श्रद्धापूर्वक मनन, चिंतन और आचरण करने में है। श्रद्धा के बिना मात्र जग दिखावे के लिए कथा आदि सुनने का कोई फल नहीं मिलता। एक बार किसी भक्त ने नारद से पूछा- ‘भगवान् की कथा के प्रभाव से लोगों के अंदर ज्ञान और वैराग्य के भाव जागने और पुष्ट होने चाहिए, वह क्यों नहीं होते?’

नारद ने कहा- ‘ब्राह्मण लोग केवल अन्न, धनादि के लोभवश घर-घर एवं जन-जन को भागवत कथा सुनाने लगे हैं, इसलिए कथा का प्रभाव चला गया।’

वीतराग शुकदेवजी के मुंह से राजा परीक्षित ने भागवतपुराण की कथा सुनकर मुक्ति प्राप्त की और स्वर्ग चले गए। शुकदेव ने परमार्थ भाव से कथा कही थी और परीक्षित ने उसे आत्म कल्याण के लिए पूर्ण श्रद्धा भाव से सुनकर आत्मा में उतार लिया था, इसलिए उन्हें मोक्ष मिला।

सत्संग के विषय में कहा जाता है कि भगवान् की कथाएं कहने वाले और सुनने वाले दोनों का ही मन और शरीर दिव्य एवं तेजोमय होता चला जाता है। इसी तरह कथा सुनने से पाप कट जाते हैं और प्रभु कृपा सुलभ होकर परमानंद की अनुभूति होती हैं। भय, विपत्ति, रोग, दरिद्रता में सांत्वना, उत्साह और प्रेरणा की प्राप्ति होती है। मन और आत्मा की चिकित्सा, पुनरुद्धार, प्राण संचार की अद्भुत शक्तियां मिलती हैं। विपत्ति में धैर्य, आवेश में विवेक व कल्याण चिंतन में मदद प्राप्त होती है।

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