हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य का आरंभ करने के पूर्व गणेशजी की पूजा करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणव रूप हैं। प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व ‘श्री गणेशाय नम:’ का उच्चारण कर उनकी स्तुति में यह मंत्र बोला जाता है-
वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरु मेदेव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
गणेशजी विद्या के देवता हैं। साधना में उच्चस्तरीय दूरदर्शिता आ जाए, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसीलिए सभी सुभ कार्यों में गणेश पूजन का विधान बनाया गया है।
गणेशजी की ही पूजा सबसे पहले क्यों होती है, इसकी पौराणिक कथा इस प्रकार है-

पद्मपुराण के अनुसार- सृष्टि के आरंभ में जब यह प्रश्न उठा कि प्रथम पूज्य किसे माना जाए, तो समस्त देवतागण ब्रह्माजी के पास पहुंजे। ब्रह्माजी ने कहा कि जो कोई संपूण पृथ्वी की परिक्रमा सबसे पहले कर लेगा, उसे ही प्रथम पूजा जाएगा। इस पर सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पड़े। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल, तो ऐसे में वे परिक्रमा कैसे कर पाते? इस समस्या को सुलझाया देवर्षि नारद ने। नारद जी ने उन्हें उपाय सुझाया, उसके अनुसार गणेशजी ने भूमि पर ‘राम’ नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की और ब्रह्माजी के पास सबसे पहले पहुंच गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें प्रथम पूज्य बताया। क्योंकि ‘राम’ नाम साक्षात श्रीराम का स्वरूप है और श्रीराम में ही संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है।
शिवपुराण की एक अन्य कथा के अनुसार एक बार समस्त देवता भगवान् शंकर के पास यह समस्या लेकर पहुंचे कि किस देव को उनका मुखिया चुना जाए। भगवान् शिव ने यह प्रस्ताव रखा कि जो भी पहले पृथ्वी की तीन परिक्रमा करके कैलास लौटेगा, वही अग्रपूजा के योग्य होगा और उसे ही देवताओं का स्वामी बनाया जाएगा। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा अत्यंत धीमी गति से चलने वाला था, इसलिए अपनी बुद्धि-चातुर्य के कारण उन्होंने अपने पिता शिव और माता पार्वती की ही तीन परिक्रमा पूर्ण की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढ़कर संसार में अन्य कोई इतना चतुर नहीं है। माता-पिता की तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बड़ा है। इसलिए जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी। बस, तभी से गणेशजी अग्रपूज्य हो गए।
Know Why Sarvpratham Ganesh Pooja Kyon Ki Jaati Hai? Hindu Dharm Ke Riti Riwaj / Manyataye,
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