Sankalp Kyu Karte Ha?

इसमें कोई संदेह नहीं कि आज तक जितने भी कार्य सिद्ध हुए हैं, उनमें व्यक्ति की साधना और संकल्प शक्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। संकल्पवान व्यक्ति ही किसी भी प्रकार की सिद्धि का हकदार है और अपने लक्ष्य को पाने की योग्यता रखता है। वह जिस कार्य को हाथ में लेता है, उसे पूरे मन और बुद्धि से पूर्ण करने के लिए अडिग व एकनिष्ठ होता है।

आमतौर पर संकल्प को दृढ़ इच्छा-शक्ति, विचार विमर्श की दृढ़ता, निजी प्रयोजन की मानसिक कल्पना और इरादों, किसी निश्चित रुचि की पूर्ति की चाह के लिए मानसिक विचार तथा चिन्तन, कर्म का मूल, कर्म का प्रेरक और कामना का मूल भी कहते हैं।

पूर्ण श्रद्धा, आत्मविश्वास, एकाग्रता के साथ किसी शुभ कार्य, जैसे पूजा-पाठ आदि कर्मकांड को पूर्ण करने वाली धारणाशक्ति का नाम ही संकल्प है। उल्लेखनीय है कि दान और यज्ञ का पुण्य तभी प्राप्त होता है, जब संकल्प सहित उन्हें पूरा किया जाता है।

मनुस्मृति में लिखा है-

संकल्पमूलः काम्यो वै यज्ञाः संकल्पसंभवाः ।
व्रतानि यमधर्माश्च सर्वे संकल्पजाः स्मृताः ॥
– मनुस्मृति 2/3
अर्थात् कामना का मूल संकल्प ही होता है और यज्ञ संकल्प से ही होते हैं। व्रत, यज्ञादि समस्त धर्मानुष्ठानों का आधार संकल्प ही कहा गया है।

संकल्प के माध्यम से हमें अपने गोत्र, जाति व अन्य विशेषताओं का निरंतर स्मरण रहता है और गौरव की अनुभूति होती है। इसी से व्यक्ति द्वारा किए गए दुष्कमों का नाश होकर शक्ति और स्फूर्ति मिलती है।

पुरोहित संकल्प के द्वारा जल ग्रहण कराते हैं, ताकि जिस काम को यजमान करने जा रहा है, उस कार्य को पूरा करने में प्रभु उसकी पूर्ण मदद करें, क्योंकि वह उसके प्रति संकल्पबद्ध है। चूंकि जल में वरुण देव का निवास माना गया है, अतः उसे ग्रहण कर संकल्प का पालन न करने वाले को वे कठोर दंड देते हैं। वेद में लिखा है- अप्सु वै वरुण (तैत्तिरीय 16/8/6) तथा अनृते खलु वै क्रियमाणे वरुणो गृह्णाति (तैत्तिरीय 1/7/2/6)। इसलिए जीवन में जल का विशेष महत्त्व है। धर्मानुष्ठानों के अलावा मरणोपरांत पितृ-तर्पण में भी जल की विशेष जरूरत होती है।

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