भारतीय संस्कृति में पुष्प का उच्च स्थान है। देवी-देवताओं और भगवान् पर आरती, व्रत, उपवास या पवाँ पर पुष्प चढ़ाए जाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान, संस्कार व सामाजिक, पारिवारिक कार्यों को बिना पुष्प के अधूरा समझा जाता है। पुष्पों की सुगंध से देवता प्रसन्न होते हैं। सुंदरता के प्रतीक पुष्प हमारे जीवन में उल्लास, उमंग, प्रसन्नता के प्रतीक हैं।

puja path me fool kyo jaruri hai
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पुष्प के संबंध में कहा गया है –

पुण्य संवर्धनाच्चापि पापौघपरिहारतः पुष्कलार्यप्रदानाचं पुष्यमित्य भिधीयते ।
– कुलार्णवतंत्र
अर्थात् पुण्य को बढ़ाने, पापों को भगाने और श्रेष्ठ फल को प्रदान करने के कारण यह पुष्प कहा जाता है।

दैवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा।
– शारदा तिलक
अर्थात् देवता का मस्तक सदैव पुष्प से सुशोभित रहना चाहिए।

पुष्पैर्देवां प्रसीदंति पुष्पैः देवाश्च संस्थिताः
न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा
तया प्रसादमायाति यथा पुश्पैर्जनार्दन।
– विष्णु नारदीय व धर्मोत्तरपुराण
अर्थात् देवता लोग रत्न, सुवर्ण, भूरि द्रव्य, व्रत तपस्या एवं अन्य किसी भी साधनों से उतना प्रसन्न नहीं होते, जितना कि पुष्प चढ़ाने से होते हैं।

कालिकापुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि किसी भी देवता पर कभी भी वासी, जमीन पर गिरे हुए, कटे, फटे, गंदे, कीड़े लगे, दूसरों से मांगे या कहीं से चुराए हुए पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए।

माला के संबंध में ललितासहस्रनाम में कहा गया है-

मां शोभां लातीति माला।
अर्थात् जो शोभा देती है, वह माला है। भगवान् को जो पुष्पों की मालाएं चढ़ाई जाती हैं, उनमें कमल अथवा पुंडरीक की माला को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।

अपने आराध्य देव की प्रसन्नता के लिए कौन-सा पुष्प चढ़ाना चाहिए और कौन-सा नहीं? इस संबंध में यहां संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है-

श्री गणेशजी- आचार भूषण नामक ग्रंथानुसार गणेशजी को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के पुष्प प्रिय हैं।

शंकरजी- इनके पूजन में मौलसिरी के पुष्प, धतूरे के पुष्प, हरसिंगार व नागकेसर के सफेद पुष्प, सूखे कमल गट्टे, निर्गुडी, कनेर, जवा कुसुम, आक, कुश आदि के पुष्प चढ़ाने का विशेष महत्त्व है।

सूर्य नारायण- इनकी उपासना कुटज के पुष्पों से की जाती है। इसके अलावा कनेर, कमल, चंपा, मौलसिरी, पलाश, आक, अशोक आदि के पुष्प भी चढ़ाए जाते हैं। इन पर तगर का पुष्प नहीं चढ़ाया जाता है।

भगवती गौरी- शंकर भगवान् को चढ़ने वाले पुष्प मां भगवती को प्रिय हैं। इसके अलावा अपामार्ग, कनेर, बेला, मदार, आक, सफेद कमल, पलाश, चंपा, चमेली आदि पुष्प भी चढ़ाए जाते हैं। कुछ ग्रंथों में आक और मदार के पुष्प चढ़ाना मना किया गया है, अतः अन्य पुष्पों के अभाव में ही इनका उपयोग करें।

श्रीकृष्ण- अपने प्रिय पुष्पों का उल्लेख महाभारत में युधिष्ठिर से करते हुए वे कहते हैं- ‘हे राजन् ! मुझे कुमुद, करवरी, चणक, मालती, नंदिक, पलाश और वनमाला के पुष्प बहुत प्रिय हैं।

लक्ष्मीजी- इनका सबसे अधिक प्रिय पुष्प कमल है।

विष्णुजी- इन्हें कमल, मौलसिरी, जूही, कदम्ब, केवड़ा, चमेली, अशोक, मालती, बसंती, चंपा, वैजयंती के पुष्प विशेष प्रिय हैं।

पुष्पों के संबंध में उल्लेखनीय है कि कमल और कुमुद के पुष्प 11 से 15 दिन तक बासी नहीं होते। अगत्स्य के पुष्प कभी बासी नहीं माने जाते। चंपा की कली को छोड़कर किसी भी दूसरे पुष्प की कली कभी भी देवता पर नहीं चढ़ानी चाहिए। मध्याह स्नान के बाद पुष्प तोड़ने की सख्त मनाही शास्त्रों में की गई है। किसी भी पूजन में केतकी के पुष्प नहीं चढ़ाते हैं।

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