पौराणिक ग्रंथों में कलश को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और मातृगण का निवास बताया गया है। समुद्र मंथन के उपरांत कलश में अमृत की प्राप्ति हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जगत्जननी सीताजी का आविर्भाव भी कलश से ही हुआ था। प्राचीन मंदिरों में कमल पुष्प पर विराजमान लक्ष्मी का दो हाथियों द्वारा अपने-अपने सूंड़ में जल कलश से स्नान कराने का दृश्य मिलता है।
ऋग्वेद में कलश के विषय में कहा गया है-
आपूर्णो अस्व कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं षिषिचे पिथ्ये ।
समु प्रिया आवृवृत्रन् मदाय प्रदक्षिणीदभि सोमास इंद्रम् ॥
ऋग्वेद खंड 2/अ. 2/32/15
अर्थात् पवित्र जल से भरा हुआ कलश भगवान् इंद्र को समर्पित है।

लंका विजय के उपरांत भगवान् श्रीराम के अयोध्या लौटने पर उनके राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में जल भरे कलशों की पंक्तियां संजोई गई थीं।
कंचन कलस विचित्र संवारे। सबहीं धारे सजि निज द्वारे ॥
अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्यदेव द्वारा दिए गए अमृत वरदान से मानव का शरीर कलश शत-शत वर्षों से जीवन रस धारा में प्रवाहित हो रहा है।
इस प्रकार देखा जाए, तो हमारी संस्कृति में कलश अथवा घड़ा अत्यंत मांगलिक चिह्न के रूप में प्रतिष्ठित है। किसी भी प्रकार की पूजा, अनुष्ठान, राज्याभिषेक, गृह प्रवेश, यात्रा आरंभ, उत्सव, विवाह आदि शुभ प्रसंग में सर्वप्रथम कलश को लाल कपड़े, स्वस्तिक, आम के पत्तों, नारियल, सिक्का, कुंकुम, अक्षत, फूल आदि से अलंकृत करके ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में उसकी पूजा की जाती है और अनुष्ठान विशेष के फलीभूत होने की कामना की जाती है। साथ ही वरुण देव का आह्वान किया जाता है, ताकि कलश हमारे लिए समुद्र के समान वैभवशाली रत्न तुल्य सामग्री प्रदान करे।
मनुष्य जीवन की तुलना भी मिट्टी के कलश या घड़े से की गई है, जिसमें भरा पानी प्राण है, जीवन है। जैसे प्राणविहीन शरीर अशुभ माना जाता है, ठीक वैसे ही खाली कलश को भी अशुभ माना जाता है। इसीलिए इसमें पानी, दूध या अनाज भर कर पूजा आदि के लिए रखा जाता है। तभी वह हमारे लिए कल्याणकारी होता है। आपने देखा होगा कि दाह संस्कार के समय व्यक्ति के जीवन की समाप्ति के प्रतीक अर्थ में परिक्रमा कर जल से भरा मटका छेद कर खाली किया जाता है और उसे फोड़ दिया जाता है।
देवीपुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवती देवी की पूजा अर्चना की शुरुआत करते समय सबसे पहले कलश की ही स्थापना की जाती है। नवरात्र के अवसर पर देवी मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी कलश स्थापित कर जगत जननी माता दुर्गा के शक्ति स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। अतः भारतीय संस्कृति में कलश स्थापना अत्यंत धार्मिक और व्यावहारिक कर्म है।
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