तैत्तिरीय संहिता में प्रकृति के सात पावन वृक्षों में पीपल की गणना है और ब्रह्मवैवर्तपुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी उल्लेख मिलता है।
पद्मपुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान् विष्णु का रूप है। इसीलिए इसे धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठ देव वृक्ष की पदवी मिली और इसका विधिवत पूजन आरंभ हुआ। अनेक अवसरों पर पीपल की पूजा का विधान है। सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में साक्षात् भगवान् विष्णु एवं लक्ष्मी का वास होता है।

पुराणों में पीपल (अश्वत्थ) का बड़ा महत्त्व बताया गया है-
मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च।
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान् हरिः ॥
फलेऽच्युतो न सन्देहः सर्वदेवैः समन्वितः ॥
स एव विष्णुर्द्धम एव मूर्ती महात्मभिः सेवित्पुण्यमूलः ।
यस्याश्रयः पापसहस्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्यः ॥
स्कंदपुराण नागर 247/41-42-44
अर्थात् ‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान् हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तिमान श्री विष्णुस्वरूप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है।’
गीता में भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं-
‘अश्वत्यः सर्ववृक्षाणां’ – श्रीमद्भगवद्गीता 10/26
अर्थात् मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। इस कथन में उन्होंने अपने आपको पीपल के वृक्ष में समासीन घोषित किया है।
पद्मपुराण के मतानुसार पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु लंबी होती है। जो व्यक्ति इस वृक्ष को पानी देता है, वह सभी पापों से छुटकारा पाकर स्वर्ग को जाता है। पीपल में पितरों का वास माना गया है। इसमें सब तीर्थों का निवास भी होता है। इसीलिए मुंडन आदि संस्कार पीपल के नीचे करवाने का प्रचलन है।
महिलाओं में यह विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा-अर्चना, परिक्रमा करके जल चढ़ाते रहने से संतान की प्राप्ति होती है, पुत्र उत्पन्न होता है। पुण्य मिलता है। अदृश्य आत्माएं तृप्त होकर सहायक बन जाती हैं। कामना पूर्ति के लिए पीपल के तने पर सूत लपेटने की भी परंपरा है। पीपल की जड़ में शनिवार को जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है। शनि की जब साढ़ेसाती दशा होती है, तो लोग पीपल के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करते हैं, क्योंकि भगवान् कृष्ण के अनुसार शनि की छाया इस पर रहती है। इसकी छाल यज्ञ, हवन, पूजापाठ, पुराण कथा आदि के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। पीपल के पत्तों से शुभ काम में वंदनवार भी बनाए जाते हैं। वातावरण के दूषित तत्त्वों, कीटाणुओं को विनष्ट करने के कारण पीपल को देवतुल्य माना जाता है। धार्मिक श्रद्धालु लोग इसे मंदिर परिसर में अवश्य लगाते हैं। सूर्योदय से पूर्व पीपल पर दरिद्रता का अधिकार होता है और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का अधिकार होता है। इसीलिए सूर्योदय से पहले इसकी पूजा करना निषेध किया गया है। इसके वृक्ष को काटना या नष्ट करना ब्रह्महत्या के तुल्य पाप माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल रात-दिन निरंतर 24 घंटे आक्सीजन देने वाला एकमात्र अद्भुत वृक्ष है। इसके निकट रहने से प्राणशक्ति बढ़ती है। इसकी छाया गर्मियों में ठंडी और सर्दियों में गर्म रहती है। इसके अलावा पीपल के पत्ते, फल आदि में औषधीय गुण होने के कारण यह रोगनाशक भी होता है।
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