महाभारत शांति पर्व 235.18 के अनुसार पत्नी पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अद्धांगिनी के रूप में वह पूरा करती है। तैत्तिरीय ब्राह्मण 33.3.5 में इस प्रकार लिखा है- ‘अथो अर्धी वा एवं अन्यतः यत् पत्नी’ अर्थात् पुरुष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि उसके आधे अंग को नारी आकर नहीं भरती।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार पुरुष का जन्म ब्रह्मा के दाहिने कंधे से और स्त्री का जन्म बाएं कंधे से हुआ है, इसलिए स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरुष के वाम भाग में प्रतिष्ठित किया जाता है। सप्तपदी होने तक वधू को दाहिनी ओर बिठाया जाता है, क्योंकि वह बाहरी व्यक्ति जैसी स्थिति में होती है। प्रतिज्ञाओं से बद्ध हो जाने के कारण पत्नी बनकर आत्मीय होने से उसे बाई ओर बैठाया जाता है। इस प्रकार वाई ओर आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सूत्रधार बन जाती है और अधिकार हस्तांतरण के कारण दाहिनी ओर से वह बाई ओर आ जाती है। इस प्रक्रिया को शास्त्र में आसन परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।

अन्य हिन्दू शास्त्रों में स्त्री को पुरुष का वाम-अंग बतलाया गया है। साथ ही वाम अंग में बैठने के अवसर भी बताए गए हैं।
वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने।
वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियार्थिनी ॥ – संस्कारगणपति म. म. 156
अर्थात् सिंदूरदान, द्विरागमन के समय, भोजन, शयन व सेवा के समय में पत्नी हमेशा वाम भाग में रहे। इसके अलावा अभिषेक के समय, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और ब्राह्मण के पांव धोते समय भी पत्नी को वाम (उत्तर) में रहने को कहा गया है।
उल्लेखनीय है कि जो धार्मिक कार्य पुरुष प्रधान होते हैं, जैसे विवाह, कन्यादान, यज्ञ, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमण आदि में पत्नी पुरुष के दाई (दक्षिण) ओर रहती है, जबकि स्त्री प्रधान कार्यों में वह पुरुष के वाम (बाई) अंग की तरफ बैठती है।
आप जानते ही होंगे कि मौली (लाल नाड़ा/कलावा/रक्षा सूत्र) स्त्री के बाएं हाथ की कलाई में बांधने का नियम शास्त्रों में लिखा है। ज्योतिषी स्त्रियों के बाएं हाथ की हस्तरेखाएं देखते हैं। वैद्य स्त्रियों की बाएं हाथ की नाड़ी को छूकर उनका इलाज करते हैं। ये सब बातें भी स्त्री को वामांगी होने का संकेत करती हैं।
भगवान् मनु के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में परमात्मा ने अपने को दो भागों में विभक्त किया। कौन-सा भाग पुरुष और कौन-सा भाग स्त्री बना, इस संबंध में देवी भागवत में लिखा है-
स्वेच्छामयः स्वेच्छयायं द्विधारूपो बभूव ह।
स्त्री रूपो वामभागांशो दक्षिणांशः पुमान् स्मृतः ॥
– देवी भागवत
अर्थात् स्वेच्छामय भगवान् स्वेच्छा से दो रूप हो गए, वाम भाग के अंश से स्त्री और दक्षिण भाग के अंश से पुरुष बने।
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