निष्क्रमण का अर्थ है- बाहर निकालना। बच्चे को पहली बार जब घर से बाहर निकाला जाता है, जैसे माता-पिता के यात्रादि पर जाने के समय निष्क्रमण संस्कार किया जाता है।
इस संस्कार का फल विद्वानों द्वारा शिशु के स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करना बताया है-
निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः।

जन्म के चौथे मास में निष्क्रमण संस्कार होता है। जब बच्चे का ज्ञान और कर्मेन्द्रियां सशक्त होकर धूप, वायु आदि को सहने योग्य बन जाती हैं। सूर्य तथा चंद्रादि देवताओं का पूजन करके बच्चे को सूर्य, चंद्र आदि के दर्शन कराना इस संस्कार की मुख्य प्रक्रिया है। चूंकि बच्चे का शरीर पृथ्वी, जल, तेज, वायु तथा आकाश से बनता है, इसलिए बच्चे का पिता इस संस्कार के अंतर्गत आकाश आदि पंचभूतों के अधिष्ठाता देवताओं से बच्चे के कल्याण की कामना करता है-
शिवे तेस्तां द्यावापृथिवी असंतापे अभिश्रियौ, शं ते सूर्य
आ तप तुशं वातु ते हृदे। शिवा अभि क्षरं त्वापो दिव्याः पयस्वतीः ॥
अथर्ववेद सं. 8/2/14
अर्थात् हे बालक ! तेरे निष्कमण के समय द्युलोक तथा पृथिवीलोक कल्याणकारी सुखद एवं शोभास्पद हों। सूर्य तेरे लिए कल्याणकारी प्रकाश करें। तेरे हृदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो। दिव्य जल वाली गंगा-यमुना आदि नदियां तेरे लिए निर्मल स्वादिष्ट जल का वहन करें।
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