एक दिन महाराज कृष्णदेव राय अपने दरबार में बैठे लोगां की फरियाद सुन रहे थे। उनके पास उस दिन एक विचित्र समस्या लेकर एक फरियादी आया।
फरियादी ने अपनी समस्या महाराज के सामने इस प्रकार रखी, “महाराज! मैं एक गरीब आदमी हूँ। मेरे पास एक मकान है जिसमें दो कमरे हैं। एक कमरे मैं मैं रहता हूँ तथा दूसरे कमरे में एक किराएदार। मेरा किराएदार एक मोची है जो दिन-भर बाजार में लोगों के जूतों की मरम्मत करता है और रात को घर आकर घंटों पूजा करता है।”
महाराज चकराए, “अरे, यह तो अच्छी बात है। तब तो मोची भला आदमी है। ऐसे आदमी से तुम्हें क्या परेशानी है?”
“हाँ, महाराज, वह भला आदमी है। मुझे समय पर किराया अदा करता है। किसी बात की कभी झिक-झिक, खिच-खिच उसने मेरे साथ नहीं की है। रोज सुबह जगकर स्नान-ध्यान करने के बाद ही वह अपने काम के लिए निकलता है।” फरियादी ने कहा।
“तो फिर परेशानी क्या है?” महाराज ने पूछा।
“महाराज! शाम को जब मोची पूजा करता है तब वह हाथ में ढोलक लेकर उसे पीटते हुए जोर-जोर से भजन गाता है। उसके भजन गाने से भी मुझे कोई शिकायत नहीं है। शिकायत है उसकी ढोल से, जिसकी धमक से मैं घंटों परेशान रहता हैं और सो नहीं पाता।” फरियादी ने कहा।
महाराज को फरियादी की वास्तविक परेशानी का अनुमान लग गया। थोड़ी देर मौन रहने के बाद उन्होंने तेनाली राम से पूछा, “क्यों तेनाली राम! इस फरियादी का दुख-दर्द दूर करने का तो एक मात्रा उपाय यही है कि इसका कमरा खाली करा दिया जाए।”
“नहीं महाराज!” तेनाली राम ने कहा, “इस तरह के समाधान से तो मोची ही नहीं, फरियादी भी परेशान हो उठेगा।”
“वह कैसे?” महाराज ने पूछा।
“महाराज! फरियादी ने साफ-साफ कहा है कि वह गरीब आदमी है। दो कमरों के मकान का एक कमरा किराए पर देने से यह बात साफ हो जाती है कि उसे पैसों की जरूरत है तभी वह एक कमरा किराए पर देने के लिए विवश हुआ है।”
“हाँ! तुम ठीक कह रहे हो। फिर क्या समाधान है?” महाराज ने पूछा।
“महाराज! यदि यह फरियादी निन्यानबे रुपए खर्च करने के लिए तैयार हो जाए तो मैं उसे समस्या से मुक्त करा देगा।” तेनाली राम ने कहा।
महाराज ने पूछा, “फरियादी! क्या तुम निन्यानबे रुपए खर्च करने की स्थिति में हो?”
“यदि समस्या से मुक्ति मिल जाए तो मैं निन्यानबे क्या, सौ रुपए भी खर्च कर सकता हैं।” फरियादी ने कहा।
“नहीं, केवल निन्यानबे रुपए।” इस बार यह बात तेनाली राम ने कही।
“जी हाँ, श्रीमान! मैं निन्यानवे रुपए खर्च कर सकता हूँ।” फरियादी ने कहा।
“तो ठीक है, जाओ और निन्यानबे रुपए गिनकर एक मखमल की थैली में डाल दो। और जिस समय मोची कमरे में नहीं हो, उस समय उसके कमरे में वह थैली डाल दो। ऐसा करने के एक सप्ताह बाद आकर महाराज को उसके भजन का हाल बताना। अब जाओ, और जाकर वही करो जो मैंने तुम्हें बताया है।” तेनाली राम ने कहा।
फरियादी महाराज के दरबार से बहुत आशंकित मन से लौटा। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह उसकी समस्या का कोई समाधान है। वह मन-ही-मन सोचता जा रहा था, ‘आज के जमाने में गरीबों की कौन सुनता है कि राजा-महाराजा सुनेंगे! खैर, चलो! यहाँ आए तो निन्यानबे के चक्कर में पड़े। न आते तो अच्छा था।”
अपने घर पहुँचकर फरियादी ने मखमल की थैली में निन्यानवे रुपए गिनकर डाले और मोची के कमरे में फेंक आया। उसे इसका कोई परिणाम मिलने की आशा नहीं थी।
दूसरी तर्फ महाराज भी तेनाली राम की सलाह से सहमत नहीं नहीं थे। थे। उन्होंने उन्होंने तेनाली राम से पूछा, “तेनाली राम! तुमने उस फरियादी को निन्यानवे रुपए की थैली मोची के कमरे में फेंकने की सलाह तो दे दी लेकिन इससे क्या होगा, मुझे बताओ।”
“महाराज! इससे मोची निन्यानबे के चक्कर में पड़ जाएगा।” तेनाली राम ने हँसते हुए कहा।
“निन्यानबे के चक्कर में?” महाराज ने चैंककर फिर पूछा।
“यह निन्यानबे का चक्कर क्या है? मुझे खुलकर बताओ। साफ-साफा”
“महाराज, यह मोची किसी के पास काम नहीं करता। यह अपनी दुकान लगाता है।
मतलब यह हुआ कि इस मोची में भी पैसेवाला बनने की लालसा है। अब जब उसे मखमल की थैली में निन्यानबे रुपए मिलेंगे तब वह उन्हें खर्च करने की कतई नहीं सोचेगा। वह सबसे पहले उस थैली में अपने एक रुपए मिलाकर उन्हें सौ रुपए में बदलेगा। इसके बाद वह इन सौ रुपयों को दो सौ रुपयों में, दो सौ रुपयों को पाँच सौ रुपयों में, पाँच सौ रुपयों को हजार रुपयों में बदलने के लिए लालायित हो उठेगा। महाराज! अब मोची को निन्यानबे के चक्कर से मुक्ति नहीं मिलनेवाली।” तेनाली राम ने विश्वासपूर्वक कहा।
“मगर तुम्हारी बात मान भी ले तो फरियादी की समस्या का हल कहाँ हुआ? तुमने तो मोची को निन्यानबे के चक्कर में डालने का इन्तजाम भर किया है।” महाराज की संशययुक्त वाणी फूटी।
“बस, सात दिन तक धैर्य रखें महाराज!” तेनाली राम ने महाराज से अनुनयपूर्वक कहा।
महाराज मौन हो गए। लेकिन उनके मन में तेनाली राम की इस विचित्र सलाह का परिणाम जानने की उत्सुकता बनी रही।
ठीक सातवें दिन वह फरियादी दरबार में उपस्थित हुआ। उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव थे। जैसे ही उसे अवसर मिला, वह महाराज के सामने आया और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ लिये।
महाराज ने फरियादी से पूछा, “क्या हाल है फरियादी? तुम्हारी समस्या बनी हुई है या…।”
फरियादी ने तत्परता से उत्तर दिया, “महाराज! अब कोई समस्या नहीं है।”
“अरे! यह चमत्कार कैसे हुआ?” महाराज ने विस्मय से पूछा।
“महाराज! जिस दिन मैंने मोची के कमरे में थैली फेंकी, उस रात मोची ने थोड़ी देर तक भजन गाया। उसके दूसरे दिन भी थोड़ी देर तक भजन गाया। लेकिन उसके बाद से वह रोज रात को जूते गाँठने के काम में लगा रहता है। बाजार से लौटने के बाद भगवान के सामने दीप जलाकर प्रणाम करता है और अपने काम में लग जाता है।… महाराज, मुझे अब उससे कोई शिकायत नहीं है। मैं रोज रात को चैन की नींद सोता है।”
महाराज ने देखा, तेनाली राम मन्द-मन्द मुस्कुरा रहा था।
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