प्राचीन काल से हमारे ऋषि-मुनियों, विचारकों और मर्मज्ञों ने इस बात का समर्थन किया है कि मनुष्य जीवन अपने आप में अद्भुत एवं महान है। ईश्वर ने पृथ्वी पर 84 लाख योनियां बनाई हैं जिसमें जीवात्मा भटकने के बाद मनुष्य का जन्म पाती है, क्योंकि पेड़-पौधों में 30 लाख, कीड़े-मकोड़ों में 27 लाख, पक्षी में 14 लाख, पानी के जीव-जंतुओं में 9 लाख और पशु में 4 लाख योनियां पाई जाने की मान्यता है। विवेक चूड़ामणि 5 में कहा गया है दुर्लभं मानुषं देहं अर्थात् मनुष्य देह दुर्लभ है। इसी प्रकार चाणक्य नीति 14/3 में लिखा है-

पुनर्वितं पुनर्मितं पुनर्भार्या पुनर्मही।
एतत्सर्व पुनर्लभ्यं न शरीरं पुनः पुनः ॥

अर्थात् नष्ट हुआ धन पुनः मिल जाता है, रूठे हुए या छूटे व बिछड़े मित्र पुनः मिल जाते हैं या नए मित्र वन जाते हैं, पत्नी का विछोह, त्याग या देहांत हो जाने पर दूसरी पत्नी भी मिल जाती है, जमीन-जायदाद, देश, राज्य पुनः मिल जाते हैं और ये सब वार-बार प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन यह मानव शरीर बार-बार नहीं मिलता। क्योंकि ‘नरत्वं दुर्लभं लोके’ इस संसार में नरदेह प्राप्त करना दुर्लभ है-ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

भगवान् श्रीराम स्वयं मनुष्य शरीर की महत्ता बताते हुए कहते हैं-

बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सवग्रंयन गावा ॥

अर्थात् बड़े सौभाग्य से यह नर-शरीर मिला है। सभी ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है।

नरक स्वर्ग अपवर्ग नसेनी। ग्यान विराग भगति सुभ देनी ॥

अर्थात् यह मनुष्य योनि नरक, स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है, शुभ ज्ञान, वैराग्य और भक्ति को देने वाली है।

नर तन भव बारिधि कहुं बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो ॥

अर्थात् यह मनुष्य देह संसार सागर से तरने के लिए जहाज है। मेरी कृपा ही अनुकूल हवा है।

साधन घाम मोच्छ कर द्वारा। पाइ न जेहिं परलोक संवारा ॥

अर्थात् यह नर शरीर साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा है। इसे पाकर भी जो अपने परलोक की तैयारी न कर सके, वह अभागा है।

मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ इसीलिए कहा गया है, क्योंकि इस योनि में ही जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल सकती है। अतः ईश्वर भक्ति और शुभ कार्यों में समय व्यतीत करना चाहिए।

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