निश्चित क्रम में संगृहीत विशेष वर्ण जिनका विशेष प्रकार से उच्चारण करने पर एक निश्चित अर्थ निकलता है, मंत्र कहलाते हैं। शास्त्रकार कहते हैं-मननात् त्रायते इति मंत्रः। अर्थात् मनन करने पर जो त्राण दे, या रक्षा करे, वह मंत्र है। मंत्र में निहित बीजाक्षरों में उच्चारित ध्वनियों से शक्तिशाली विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं जो चमत्कारी प्रभाव डालती हैं। भिन्न-भिन्न ध्वनि भिन्न-भिन्न शक्तिरूप है।

रामचरितमानस में मंत्र जप को भक्ति का पांचवां प्रकार माना गया है-

मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा ॥
– अरण्यकाण्ड 35/1

मंत्र एक ऐसा साधन है, जो मानव की सोई हुई चेतना को, सुषुप्त शक्तियों को सक्रिय कर देता है।

मंत्रों में अनेक प्रकार की शक्तियां निहित होती हैं, जिसके प्रभाव से देवी-देवताओं की शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त किया जाता है।

कहा गया है-  मंत्राधीनंच दैवताम्। अर्थात् देवता मंत्र के अधीन हैं।

मंत्र जप से उत्पन्न शब्द शक्ति संकल्प बल तथा श्रद्धा बल से और अधिक शक्तिशाली होकर अंतरिक्ष में व्याप्त ईश्वरीय चेतना के संपर्क में आती है तथा अंतरंग पिंड और बहिरंग ब्रह्मांड में एक असाधारण शक्ति प्रवाह उत्पन्न करती है, जिसके परिणामस्वरूप मंत्र का चमत्कारिक प्रभाव साधक को सिद्धियों के रूप में मिलता है। शाप और वरदान इसी मंत्र शक्ति और शब्द शक्ति के मिश्रित परिणाम हैं, जिनका उल्लेख धर्म ग्रंथों में मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि साधक की श्रद्धा इष्ट में जितनी अधिक होगी, उपास्य के प्रति उसका विश्वास उतना ही प्रगाढ़ होगा। ईश्वर से मिलने की छटपटाहट, भक्ति जितनी अधिक होगी और उच्चारण जितना स्पष्ट होगा, मंत्रबल उतना ही प्रचंड होता चला जाएगा। जहां तक मंत्र की शक्ति का प्रश्न है, तो हम भली प्रकार जानते हैं कि अच्छे शब्द सभी को अच्छे लगते हैं और अपशब्द तुरंत क्रोध, घृणा, उपेक्षा आदि पैदा करते हैं। फिर विशेष प्रकार से संगृहीत शब्द-बीज की शक्ति के प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है?

भारद्वाज स्मृति में प्राण- प्रतिष्ठित माला से मंत्र जप करने के संबंध में कहा है-

अप्रतिष्ठितमाला या सा जपे विफला स्मृता।
तस्मात् प्रतिष्ठा कर्तव्या जपस्य फलमिच्छता ॥
– भारद्वाज स्मृति 7/53

माला से मंत्र जप करने से पूर्व उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करना जरूरी होता है। विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण एवं प्रतिष्ठिा-विधान के द्वारा ही उसमें देवत्व का आधान होता है अन्यथा वह साधारण काष्ठ ही रहता है। विद्वान ब्राह्मण के द्वारा उच्चरित मंत्रों में इतनी शक्ति रहती है कि वे मंत्र पत्थर को देवता बना देते हैं और अचेतन पत्थर भी सजीव हो उठते हैं। उसके बाद ही उनकी पूजा फलवती होती है। अतः गायत्री आदि मंत्रों को माला में जपने से पूर्व उसकी यथाविधि प्राण-प्रतिष्ठा अवश्य करा लेनी चाहिए और उस प्रतिष्ठित, सिद्ध माला को देवस्वरूप ही मानकर आदर भाव के साथ रखनी चाहिए।

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