विवाह के अवसर पर एक संस्कार के रूप में वर, वधू की मांग में सिंदूर भरता है। इसे ही सुमंगली क्रिया कहते हैं। इसके पश्चात् विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए जीवन-भर मांग में सिंदूर लगाए रखती है, क्योंकि मांग में सिंदूर भरना हिंदू धर्म की परंपरा के अनुसार सुहागिन होने का प्रतीक माना जाता है। उल्लेखनीय है कि हमारे शास्त्रों में पति को परमेश्वर का दर्जा प्रदान किया गया है।

mang mein sindoor kyon lagate hain
mang mein sindoor bharna suhag ki nishani kyo

मांग में सिंदूर भरने से स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि तो होती है, यह मंगल-सूचक भी है। इससे यह भाव प्रदर्शित होता है कि ब्रह्म ज्योतिर्मय है और उस ज्योति का रंग लाल है। देवी भागवत में भगवती ने स्वयं कहा है कि ब्रह्म और शक्ति (मैं) एक ही हूं। हम दोनों मिलकर ही सृष्टि को जन्म देते हैं। देवी, शक्ति को लाल रंग प्रिय है। शास्त्रों में विधवा को मांग में सिंदूर लगाने का निषेध है।

हमारे शास्त्रकारों ने मांग में सिंदूर भरने का प्रावधान इसलिए किया, क्योंकि यह स्थान ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर है, जो पुरुष की अपेक्षा स्त्री में अधिक कोमल होता है। सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिकता में होने के कारण चेहरे पर जल्द झुर्रियां नहीं पड़तीं। इससे स्त्री के शरीर में स्थित वैद्युतिक उत्तेजना नियंत्रित होती है और यह मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है। इसके अलावा सिंदूर का पारा स्त्रियों के सिर में होने वाली जूं, लीखों को भी नष्ट करता है।

जिन स्त्रियों के सीमंत या भृकुटी केंद्र में यदि नागिन रेखा पड़ी हो, तो सामुद्रिक शास्त्र के मतानुसार इसे दुर्भाग्य का सूचक माना गया है। अतः उसके इस दोष के निवारण के लिए भी उसे मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी जाती है।

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