जिस मंदिर से घंटा-घड़ियाल बजने की नियमित ध्वनि आती रहती है, उसे जाग्रत देव मंदिर कहा जाता है। मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर घंटे लगाए जाते हैं, ताकि प्रभु का दर्शनार्थी इसे बजाकर अपने आने की सूचना दर्ज करा सके। आरती के समय घंटे-घड़ियाल बजाने से जो लोग मंदिर के आसपास होते हैं, उन्हें भी यह पता चल जाता है कि पूजा-आरती का समय हो गया है। उल्लेखनीय है कि सुबह-शाम मंदिरों में जब पूजा-आरती की जाती है, तो छोटी घंटियों, घंटों के अलावा घड़ियाल भी बजाए जाते हैं। इन्हें विशेष ताल और गति से बजाना अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि घंटा बजाने से मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति के देवता भी जाग्रत हो जाते हैं, अन्यथा जब आप उनके दर्शन के लिए जाते हैं, तो वे अपनी समाधि में डूबे रह सकते हैं, ऐसे में आपकी पूजा, प्रार्थना प्रभावशाली नहीं होगी। इसके अलावा घंटा बजाने के पीछे मान्यता यह भी है कि इनकी ध्वनि से अनिष्ट करने वाली विपत्तियों से व्यक्ति बच जाता है। स्कंदपुराण के अनुसार घंटानाद से मानव के सौ जन्मों के पाप कट जाते हैं।

कहा जाता है कि समाधि के समय या पूर्व, योगियों को जो स्वर अपने भीतरं सुनाई पड़ते हैं, वे वैसे ही होते हैं, जो घंटा और घड़ियाल को बजाने से पैदा होते हैं। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ था, तब जो नाद था, घंटे की ध्वनि में वही नाद निकलता है, यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है। उल्लेखनीय है कि वृषभ (नंदी) को इस प्रकार के नाद का प्रतीक माना गया है। घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है, क्योंकि जब प्रलय काल आएगा, तब भी इसी प्रकार का नाद प्रकट होगा। ऐसा विश्वास किया जाता है।
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