श्रीरामकृष्ण देव कहा करते थे, ‘ताली बजाकर प्रातः काल और सायं काल हरिनाम भजा करो। ऐसा करने से सब पाप दूर हो जाएंगे। जैसे पेड़ के नीचे खड़े होकर ताली बजाने से पेड़ पर की सब चिड़ियां उड़ जाती हैं, वैसे ही ताली बजाकर हरिनाम लेने से देहरूपी वृक्ष से सब अविद्यारूपी चिड़ियां उड़ जाती हैं।

प्राचीन काल से मंदिरों में पूजा, आरती, भजन-कीर्तन आदि में समवेत् रूप से ताली बजाने की परंपरा रही है, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने का एक अत्यंत उत्कृष्ट साधन है। चिकित्सकों का कहना है कि हमारे हाथों में एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स अधिक होते हैं। ताली बजाने के दौरान हथेलियों के एक्यूप्रेशर केंद्रों पर अच्छा दबाव पड़ता है। जिससे शरीर की अनेक बीमारियों में लाभ पहुंचता है और शरीर निरोगी बनता है, अतः ताली बजाना एक उत्कृष्ट व्यायाम है। इससे शरीर की निष्क्रियता खत्म होकर क्रियाशीलता बढ़ती है। रक्त संचार की रुकावट दूर होकर अंग ठीक तरह से कार्य करने लगते हैं। रक्त का शुद्धिकरण बढ़ जाता है और हृदय रोग, रक्त नलिकाओं में रक्त का थक्का बनना रुकता है। फेफड़ों की बीमारियां दूर होती हैं। रक्त के श्वेत रक्तकण सक्षम तथा सशक्त बनने के कारण शरीर में चुस्ती, फुर्ती तथा ताजगी का एहसास होता है। रक्त में लाल रक्तकणों की कमी दूर होकर वृद्धि होती है और स्वास्थ्य सुधरता है। अतः पूजा-कीर्तन में तालबद्ध तरीके से अपनी पूरी शक्ति से ताली बजाएं और रोगों को दूर भगाएं। इससे तन्मय होने और ध्यान लगाने में भी सुविधा होगी।
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