महाराज कृष्णदेव राय अपने प्रिय सभासद तेनाली राम के साथ प्रायः विजयनगर के भ्रमण के लिए निकल जाते थे। प्रजा का दुख-दर्द जानने का उन्हें अपना यह तरीका बहुत पसन्द था। इस तरह के भ्रमण से जहाँ वे अपने राज्य की समस्त सूचनाओं से भिज्ञ रहते थे, वहीं अपने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के मनोभावों से भी परिचित होते थे। तेनाली राम को वे इस तरह की यात्राओं के समय हमेशा साथ रखते थे। उसका एकमात्रा कारण यह था कि तेनाली राम उनके मनोभावों को आसानी से समझ लेता था और स्थिति देखकर उसके अनुकूल आचरण करना जानता था।
एक बार विजयनगर में अच्छी बारिश हुई। समय पर अच्छी वर्षा हो जाने से फसल भी बहुत अच्छी हुई जिससे विजयनगर के कृषकों में काफी खुशी थी।
महाराज तेनाली राम के साथ प्रदेश की यात्रा पर थे। वे एक गाँव से दूसरे गाँव जाते और ग्रामीणों की वास्तविक दशा से अवगत होकर आगे बढ़ जाते। वे तेनाली राम के साथ ही किसी गाँव में पड़ाव डालकर रात बिताते और सुबह होते ही आगे बढ़ जाते। यह सिलसिला काफी समय से चल रहा था। एक दिन महाराज तेनाली राम के साथ एक गाँव से गुजर रहे थे। रास्ते में धान के एक खेत में एक किसान उल्लसित भाव में बैठा हुआ मिल गया। महाराज ने उसके पास जाकर कहा, “भगवान की कृपा से इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है-है न!”
उस किसान ने महाराज और तेनाली राम को सामान्य राहगीर समझा और बहुत दर्प के साथ उत्तर दिया, “अरे भाई! इसमें भगवान की कृपा जैसी कोई बात नहीं है। खेत में कुछ भी भगवान की कृपा से नहीं उगता है। उगता है अच्छे बीज, खाद, सिंचाई और निराई के कारण। अभी जो यह लहलहाता हुआ खेत देख रहे हो, वह मेरी मेहनत के कारण है, भगवान की कृपा के कारण नहीं। मैंने कड़ी धूप में इस खेत में कुदाल चलाया, कड़ी मेहनत कर मिट्टी तैयार की, बारिश में भीग-भीगकर बुआई की, लगातार सतर्क रहा, समय पर सिंचाई की, रात में जगकर फसल की रखवाली की। तब जाकर यह खेत इस तरह लहलहाया है। यह मेरी लगातार मेहनत का परिणाम है। जो भी मेहनत करेगा, खेत उसके लिए अच्छी पैदावार देगा ही। यही नियम है। न तो यह भाग्य का खेल है और न ही ईश्वरीय चमत्कार!”
तेनाली राम ने किसान को इस तरह अतिविश्वास में बोलते सुना तब किसान से कहा, “हाँ, तुम ठीक कहते हो, मेहनत करने वालों को ही उसका अच्छा फल भी प्राप्त होता है।” इतना कहकर उसने महाराज को आगे बढ़ने का संकेत किया।
दोनों अपने गन्तव्य की ओर बढ़ने लगे।
इस घटना के कुछ वर्ष बाद विजयनगर अनावृष्टि का शिकार हो गया। बरसात के मौसम में भी आसमान में बादलों के दर्शन दुर्लभ हो गए। सूर्य की सीधी किरणों से धरती में दरारें पड़ने लगीं। विजयनगर की प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी। मवेशियों के लिए चारे का अभाव हो गया। चारा नहीं मिलने के कारण मवेशी मरने लगे।
पूर्व में विजयनगर की ऐसी हालत कभी हुई हो, ऐसा महाराज की स्मृति में नहीं था। उन्होंने एक दिन तेनाली राम से प्रजा का दुख-सुख जानने के लिए विजयनगर भ्रमण का कार्यक्रम तैयार करने के लिए कहा।
तेनाली राम ने महाराज के खुफिया विभाग से विजयनगर के ऐसे इलाकों का नक्शा तैयार करवा लिया जहाँ अनावृष्टि के कारण भुखमरी की नौबत आ चुकी थी। किसान पलायन करने को बाध्य हो गए थे। मवेशी मर रहे थे।
नक्शा मिल जाने पर तेनाली राम ने गाँवों की प्राथमिकताएँ तय कीं कि कहाँ पहले जाना चाहिए और कहाँ बाद में। फिर महाराज और तेनाली राम का विजयनगर भ्रमण का अभियान शुरू हो गया। महाराज कृष्णदेव राय बहुत सूक्ष्मता से यह जानकारी जुटा रहे थे कि किस गाँव में कितने किसान रहते हैं और अनावृष्टि के कारण उन्हें कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है।
वैसे राज्य का खुफिया विभाग अपने स्तर पर पूरे राज्य की बदहाली के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य जुटाने में लगा था और राज्य का सिंचाई विभाग उन सम्भावनाओं की तलाश में था जिससे अनावृष्टि के बावजूद राज्य में कृषि की पहल की जा सके।
महाराज ने राज्य के अन्न भंडार के द्वार अनावृष्टि के शिकार कृषकों के सहायतार्थ खुलवा दिए थे। मगर इतना ही। ही काफी नहीं था। इसलिए वे स्वयं गाँवों की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए निकले थे।
यात्रा आरम्भ करने के एक सप्ताह बाद ही महाराज उस गाँव में थे जहाँ का एक किसान कभी उनसे बोला था, ‘कृषि उत्पाद उसके श्रम का परिणाम है, ईश्वरीय कृपा का नहीं।’ उस गाँव में प्रवेश के साथ हीं उन्हें वह घटना याद हो आई।
संयोग की बात थी कि तेनाली राम को वह किसान खेत की मेड़ पर बैठा दिख गया। किसान उदास था और उसके खेत में भी दूर तक कोई फसल नहीं दिख रही थी। उसके पास पहुँचने के बाद तेनाली राम ने महाराज को रुकने का संकेत किया और खुद उस किसान के पास पहुँचकर पूछा, “क्या बात है भाई! बहुत उदास दिख रहे हो?”
उस किसान ने लम्बी साँस ली और बोला, “क्या कहँ भाई, सब किस्मत का खेल है। कभी इस खेत में फसलें लहलहाती थीं। इस साल उपरवाले ने ऐसा कहर बरपा किया है कि खेत में डाले गए बीज सूरज की तपिश से भुन गए। खाद बरबाद हो गई। इस बार यदि बारिश नहीं हुई तब बीज-खाद की कीमत भी जेब से भरनी होगी।”
तेनाली राम ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “अजीब बाजीगर है यह ऊपरवाला भी! कभी देता है तो कभी ले भी लेता है।”
तेनाली राम की बातें सुनकर किसान ने उसकी ओर देखा। उसे तेनाली राम का चेहरा पहचाना-सा लगा। फिर उसे तेनाली राम से इसी मौसम में कुछ वर्ष पहले हुई मुलाकात की याद हो आई। उसने तेनाली राम से पूछा, “आप मेरा दुख जानना चाहते हैं, तो कटाक्ष क्यों कर रहे हैं? आपकी बातों से ऐसा लग रहा है मानो आप जले पर नमक छिड़कने आए हैं। आपकी बातें मुझे सान्त्वना नहीं दे रही हैं और न ही ढाढस बंधा रही हैं!”
तेनाली राम ने उचित अवसर देखते हुए कहा, “बन्धु, तुम्हें स्मरण होगा जब हम लोग पिछली बार तुमसे यहीं पर मिले थे तब तुमने यह मानने से इनकार कर दिया था कि अच्छी फसल होना भगवान की कृपा है बल्कि अतिविश्वास से कहा था कि अच्छी फसल मेरी मेहनत का परिणाम है।… अब जब फसल बरबाद हो गई है तब इसके लिए तुम भगवान पर दोष मढ़ रहे हो! यह उचित नहीं है। अच्छे परिणाम का श्रेय खुद को देना और बुरे परिणाम के लिए भगवान को दोषी बताना उचित नहीं है। इसी खेत की फसलों से मुझे तो यही शिक्षा मिली है कि अच्छे परिणाम के लिए भगवान की कृपा और परिश्रम दोनों की आवश्यकता होती है।”
किसान अवाक् होकर तेनाली राम का मुँह देखता रह गया।
महाराज ने तेनाली राम की पीठ थप-थपाई और दोनों आगे बढ़ गए।
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