कारगर तरकीब! तेनाली राम की मजेदार कहानियां

Kargar Tarkeeb Tenali Ram Ki Mazedar Kahani

तेनाली राम अपनी मेधा के बूते विजयनगर के दरबार का सबसे लोकप्रिय सभासद बन चुका था। एक साधारण विदूषक ने इतनी तरक्की कर ली थी कि उसके सहकर्मी सभासद उससे ईष्या करने लगे थे। तेनाली राम को किसी चीज का अभाव नहीं था। प्रायः दरबार में महाराज उसकी बातों से प्रसन्न होकर उसे कुछ-न-कुछ देते रहते थे। सहकर्मियों की ईष्या का यही कारण था।

एक दिन दरबार में इस बात की चर्चा आरम्भ हो गई कि कोई किसी को कितनी बार मूर्ख बना सकता है-एक बार, दो बार या वार-वार?

अधिकांश सभासदों की राय थी कि कोई भी व्यक्ति किसी को एक बार तो मूर्ख बना सकता है, बार-बार नहीं। इस चर्चा में सभी सभासद बढ़-चढ़कर भाग ले रहे थे मगर तेनाली राम इस चर्चा के प्रति उदासीन था और चुपचाप अपने आसन पर बैठा हुआ था। महाराज कृष्णदेव राय स्वयं इस चर्चा में रुचि ले रहे थे। अचानक उनका ध्यान इस बात की ओर गया कि तेनाली राम इस चर्चा में भाग नहीं ले रहा है तथा उदासीन भाव से अपने आसन पर इस तरह बैठा हुआ है मानो इस चर्चा का कोई अर्थ ही न हो!

सारा दरबार एकमत हो गया कि कोई भी व्यक्ति किसी को एक बार ही मूर्ख बना सकता है। स्वयं महाराज ने यह बात निष्कर्ष के रूप में कही। मगर तेनाली राम तब भी शान्त रहा। शेष सभासद महाराज की हाँ में हाँ मिलाते रहे। जब महाराज ने देखा कि इस चर्चा के निष्कर्ष तक पहुँचने के बाद भी तेनाली राम शान्त है तब उन्होंने पूछा, “क्या बात है तेनाली राम! तुम चुप क्यों हो? क्या तुम नहीं मानते कि कोई भी किसी को एक बार ही मूर्ख बना सकता है?”

तेनाली राम कुछ बोलता, उससे पहले ही सारे सभासद हँस पड़े और उनमें से एक ने कटाक्ष किया, “महाराज, तेनाली राम विद्वान हैं और वे हम सबको एक बार में मूर्ख बना सकते हैं, ऐसे में वे हमारी बात से सहमत क्यों होंगे?”

महाराज हँसते हुए पूछ बैठे, “क्या सचमुच ऐसा है तेनाली राम? तुम एक बार में हम सबको मूर्ख बना सकते हो?”

तेनाली राम ने विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज! मैं ऐसा कोई दावा कैसे कर सकता हूँ? आप अन्नदाता हैं। आप स्वामी हैं और मैं सेवक हूँ। हाँ, इतना अवश्य है कि अभी जो कुछ कहा गया है, उससे मैं सहमत नहीं हूँ।”

तभी एक सभासद ने कहा, “महाराज, दरबार के निष्कर्ष को नहीं मानने का अर्थ यहीं है कि तेनाली राम मानते हैं कि एक आदमी एक ही साथ हम सबको मूर्ख बना सकता है।”

तेनाली राम को अब गुस्सा आने लगा था। उसने महसूस किया कि दरबार के सभी सभासद आज उसे निशाना बनाकर घेर रहे हैं और उसने जो नहीं कहा है, वही स्वीकार करवाना चाहते हैं। वह असल में इस तरह की व्यर्थ की चर्चा में पड़ना नहीं चाहता था जिसके कारण मौन था।

महाराज उसकी चुप्पी तोड़ना चाहते थे इसलिए उन्होंने तेनाली राम से सीधा सवाल किया, “तो तेनाली राम! तुम यह मानते हो कि एक आदमी एक बार में पूरी सभा को मूर्ख बना सकता है।”

अब तक तेनाली राम मन-ही-मन कुछ विचार कर चुका था। उसने आसन से उठकर कहा, “अपराध क्षमा हो महाराज! ऐसा हो सकता है।”

“ठीक है!” महाराज ने कहा, “हमें प्रतीक्षा रहेगी। पर स्मरण रखना कि ऐसे प्रयास के समय तुम अकेले पड़ जाओगे और मेरे साथ सारे सभासद होंगे! सोचो, तब भी क्या तुम हम सबको एक साथ मूर्ख बना दोगे?”

“जी हाँ महाराज!” विनम्रता से तेनाली राम ने कहा।

सारे सभासद तेनाली राम के इस उत्तर से सन्न रह गए। उन्हें तेनाली राम के इस उत्तर का अनुमान ही नहीं था। उन्हें लगा कि तेनाली राम अपनी औकात भूल गया है। महाराज उसके इस उत्तर से अवश्य नाराज होंगे। तेनाली राम की अब खैर नहीं।

दूसरी तरफ महाराज सोच रहे थे कि तेनाली राम में विशेष योग्यताएँ हैं। वह याद कर रहा है कि महाराज सहित सारे सभासदों को एक बार में ही मूर्ख बनाया जा सकता है तो उसके इस साहसपूर्ण उत्तर का आधार अवश्य होगा। तेनाली राम जैसा व्यक्ति कभी यूँही अपना मान रखने के लिए कुछ नहीं बोलता। यह देखना रोचक होगा कि किस प्रकार वह एक साथ सभी सभासदों को मूर्ख बनाता है।

उस दिन बात आई-गई हो गई। दूसरे दिन से महाराज के दरबार में सामान्य दिनों की तरह ही काम-काज होने लगा। सभासद और महाराज तेनाली राम की बात को भूल गए।

एक दिन तेनाली राम अपनी खाट झाड़ रहा था। घर में सफाई हो रही थी। खाट झाड़ने पर खाट से कुछ खटमल गिरे। खटमलों को देखकर तेनाली राम के मस्तिष्क में एक विचार कौंध गया और उसने उनमें से मोटे-मोटे खटमलों को एकत्रित कर एक छोटी डिबिया में बन्द कर लिया।

रसोई से वह एक छोटी खरल, मूसली और एक छोटी चिमटी उठा लाया। इन सारी चीजों को उसने एक थैली में रख लिया। उसके होंठों पर एक विचित्र मुस्कान तैर रही थी और आँखों में एक विशेष चमक थी।

दूसरे दिन तेनाली राम अपने नियत समय से पहले बिस्तर से उठ गया और शीघ्रता से स्नान-ध्यान करके राजदरबार की ओर चल पड़ा। जिस समय वह राजदरबार पहुँचा, उस समय वहाँ कोई नहीं आया था। उसने थैली से डिबिया निकाली और उसका ढक्कन खोलकर उसमें रखे खटमल महाराज के आसन पर उलट दिए। फिर उसने डिबिया देखी। सारे खटमल महाराज के सिंहासन पर उड़ेले जा चुके थे और डिबिया खाली थी। इसके बाद तेनाली राम अपने आसन पर जा बैठा।

धीरे-धीरे सभासद आने लगे। दरबार भरने लगा। थोड़ी देर बाद दरबार के सारे आसन भर गए। महाराज भी आए और सभा की कार्रवाई शुरू हो गई।

सभा की कार्रवाई अभी थोड़ी देर ही चली थी कि महाराज को एक खटमल ने काट लिया। महाराज ने पहलू बदला। थोड़ी राहत महसूस की कि फिर खटमल ने उन्हें काट लिया। थोड़ी ही देर में महाराज बेचैन हो उठे। खटमलों के काटने से वे परेशान थे। उन्होंने चीखकर क्रोध-भरे स्वर में पूछा, “मेरे आसन पर खटमल कहाँ से आ गए?”

एक सभासद ने कहा, “महाराज! खटमल तो कहीं से भी आ जाते हैं और आ गए तो जिस खाट-खटिया में पनाह लेते हैं, उसे छोड़ते भी नहीं। मानव रक्त ही इन‌का आहार होता है इसलिए ये ऐसी ही जगह पर बसेरा बनाते हैं जहाँ मनुष्य बैठता है या सोता है।”

“आपमें से कोई इन खटमलों से बचने का उपाय जानता हो तो कुछ करे।”

सभासद मौन हो गए। थोड़ी देर तक आपस में धीमे-धीमे बातें करने के बाद एक सभासद ने कहा, “सिंहासन पर गरम पानी उड़ेलने से थोड़ी राहत मिल सकती है।”

महाराज खटमलों के काटने से परेशान हो उठे थे जिसके कारण उन्होंने आवेश में कहा, “राहत नहीं, छुटकारा चाहिए। स्थायी निदान बताएँ।”

सभासदों को मानो साँप सँघ गया। अब कहीं से फुसफुसाहट भी नहीं उभर रही थी।

सबको मौन देखकर तेनाली राम अपने आसन से उठा, “महाराज! मेरे पास इस समस्या से मुक्ति का एक रामबाण निदान है जिसे आजमाया जाए तो खटमलों से मुक्ति मिल जाएगी। एक लगनशील व्यक्ति मेरे इस रामबाण निदान से करोड़ों खटमलों को मार सकता है।”

सभासद तेनाली राम की बात सुनकर चैंक पड़े।

महाराज ने तेनाली राम की ओर अविश्वास से देखा और पूछा, “क्या ऐसा हो सकता है तेनाली राम?”

“जी हाँ, महाराज! मेरे इस रामबाण तरकीब को आजमाकर देखें। मेरी बात गलत साबित हो जाए तो मैं एक भी स्वर्णमुद्राएँ दंड के रूप में राजकोष में जमा कराने का बचन देता हूँ।”

महाराज ने कहा, “ठीक है तेनाली राम! तुम अपनी तरकीब आजमाकर दिखा दो!”

“लेकिन महाराज! यदि मेरी तरकीब ठीक निकली तब मुझे क्या मिलेगा?” तेनाली राम ने पूछा।

महाराज ने तेनाली राम की ओर देखते हुए कहा, “मैं और इस दरबार के सारे सभासद मिलकर तुम्हें एक भी स्वर्णमुद्राएँ देंगे।”

अब तेनाली राम महाराज के आसन के पास गया और आसन को थोड़ा उठाकर झटके से छोड़ा। एक-दो खटमल झटके के कारण आसन से गिरे।

तेनाली राम ने अपनी थैली से चिमटी निकाली और एक खटमल को पकड़कर खरल में डाला और मूसली से उसे कुचल दिया। फिर कहा, “महाराज! यही है वह रामबाण तरकीब।” आप चाहें तो इस तरह पकड़कर करोड़ों खटमलों को मारकर उनसे छुटकारा पा सकते हैं।”

“अरे, यह तो ठगी है!” महाराज ने चकित होकर कहा।

तेनाली राम ने विनम्रतापूर्वक कहा, “महाराज! मैंने इस भरी सभा में जो बात कही, उसका अक्षरशः प्रयोग किया और जिस रामबाण विधि का प्रदर्शन किया उसे कोई गलत साबित नहीं कर सकता। इसलिए मैं शर्त जीत चुका हूँ। आगे आपकी इच्छा!”

महाराज ने स्वीकार कर लिया कि तेनाली राम शर्त जीत चुका है तथा उसे तत्काल राजकोष से एक भी स्वर्णमुद्राएँ देने का निर्देश देते हुए उन्होंने राज्य कोषागार के प्रधान से कहा, “सभासदों के मासिक वेतन से इसकी आधी राशि प्राप्त कर ली जाए। सभी सभासदों के वेतन से समान राशि काटी जाए, क्यों?” उन्होंने सभासदों की ओर, उनकी सहमति जानने के लिए प्रश्न किया।

सभी सभासदों ने कहा, “ठीक है महाराज! हमें स्वीकार है।”

इसके बाद पुनः अपने आसन से तेनाली राम उठा और उँचे स्वर में कहा, “महाराज! धृष्टता क्षमा करें। कुछ दिन पूर्व इसी सभा में मुझसे प्रमाणित करने के लिए कहा गया था कि एक आदमी महाराज सहित पूरी सभा को मूर्ख बना सकता है। इसी शर्त को आज मैंने साबित किया है। मुझे इन एक भी स्वर्णमुद्राओं की कोई आवश्यकता नहीं है। कृपया अपना निर्देश वापस ले लें।”

फिर वह महाराज के आसन के पास गया और महाराज से थोड़ी देर के लिए आसन छोड़ने का अनुरोध किया।

महाराज समझ गए कि तेनाली राम आसन से खटमलों का सफाया करने के लिए उपस्थित हुआ है।

तेनाली राम जानता था कि खटमल थोड़ी देर पहले ही आसन पर रखे गए हैं इसलिए अभी वे अपने छुपने का स्थान नहीं बना पाए होंगे। उसने आसन पटक-पटककर खटमलों को उससे निकाला और उन्हें कुचलकर मार डाला।

महाराज ने भरी सभा में तेनाली राम की मानसिक क्षमता की सराहना की, और वह एक बार फिर सभासदों पर भारी पड़ा।

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