Hamari Family Motivational Story in Hindi

वाह… याहू… अंजू… अरे अंजू देखो तो… नीत गीता तुम भी आओ मेरे बच्चों देखो…
रमेश लगभग खुशी से झूमते हुए चहकते अपनी पत्नी अंजू और दोनों बच्चों को बुला रहा था!

क्या हुआ जी… पत्नी बोली…

हां पापा…. कुछ बताओ भी तो आप बडे खुश लग रहे हो क्या लॉटरी लग गई आपकी या प्रमोशन लेटर आ गया… बेटा नीत बोला तो बहन गीता ने भी उसकी हां मे हां मिलाई!

अरे यार… लॉटरी प्रमोशन छोडो… ये देखो…
फेसबुक पर मेरी पोस्ट पर लाइक्स और कमेंट्स की बौछार…..
आज मैंने सुबह हम सब की फैमिली पिक्चर डालकर पोस्ट किया और साथ मे मेंशन किया…
“मैं और मेरी प्यारी फैमिली”… देखो दनादन लाइक्स और कमेंट्स… वाह… मजा आ गया…

पत्नी ने देखा तो वो भी पिक्चर देखकर मुस्कुराई….।

बेटी भी पापा मम्मी को देखकर मुस्कुरा रही थी!

तभी बेटे नीत ने मोबाइल फोन पापा से लेकर देखा… और रुआंसा सा होकर बोला…
पापा इसमें हमारी पूरी फैमिली कहा है…?

अरे सब तो है…. मैं हूं तुम्हारी मम्मी… तुम हो और गीता है…
हो गई हमारी फैमिली… कौन नही है तुम बताओ..?

इसमें दादा जी दादी जी कहा है!

अरे बेटा ये अपनी फैमिली है इसमें दादा-दादी की कहा जगह है!

ओह… ऐसा है… मतलब कल जब मैं बडा होऊंगा और मेरी शादी हो जाएगी
तो मेरी फैमिली मेरी पत्नी मेरे बच्चे होगे आप और मम्मी नहीं?

बेटे नीत की बात सुनकर रमेश के चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया…
वो कभी नीत को तो कभी अपनी पत्नी अंजू को देखने लगा!

तभी नीत बोला – पापा, क्या बच्चों को बडे होकर भूल जाना चाहिए की उनके मम्मी पापा ने उनके लिए क्या क्या दु:ख उठाए थे उनकी खुशियों को अपनी खुशियों से आगे रख… सब भूल जाना चाहिए…

नही… नही मेरे बच्चे कभी नहीं… अच्छा हुआ जो तुमने मेरी आँखे खोल दी!

मैं इस अधूरी फैमिली को अपनी फैमिली मान रहा था उस वृक्ष को ही भूल गया जिसकी मैं एक शाखा हूं… मुझे माफ करना मेरे बच्चे… कहकर तुरंत फेसबुक से वो पिक्चर हटाते हुए डिलीट कर दी… कुछ ही देर मे फेसबुक पर एक नयी पिक्चर अपलोड की जिससे दादाजी-दादीजी के चरणों में रमेश और अंजू बैठे हुए थे और नीत और गीता दादा जी दादी जी के कंधों पर चेहरा रखे हुए मुस्कुरा रहे थे… और साथ मे एक लाइन मेंशन थी…

“हमारी फैमिली”

दोस्तों, अगर आज हमनें अपने बच्चों को सयुंक्त परिवार का मह्त्व नही समझाया तो आगे आने वाली पीढ़ी दादा-दादी, नाना-नानी जैसे बड़े रिश्ते भूलते देर नही लगाएगा, ज्यादा से ज्यादा बच्चों को बड़े बुजुर्गों से सम्पर्क करने दीजिये ताकी उनमे परिवार के प्रति भावना जागृत हो सके।

1. संयुक्त परिवार ही सच्चा परिवार होता है
माता-पिता, दादा-दादी सभी मिलकर एक परिवार को पूर्ण बनाते हैं। केवल पति-पत्नी और बच्चों को ही “फैमिली” कहना अधूरा दृष्टिकोण है।

2. बुज़ुर्गों का सम्मान और स्थान जरूरी है
दादा-दादी हमारे संस्कारों, परंपराओं और अनुभवों की जीवित पुस्तक होते हैं। उन्हें नज़रअंदाज़ करना जड़ों को काटने जैसा है।

3. बच्चों को सही मूल्यों की शिक्षा दें
अगर हम बच्चों को अभी से यह नहीं सिखाएंगे कि बुज़ुर्गों का परिवार में क्या स्थान है, तो आगे चलकर वे भी हमें भुला देंगे।

4. सोशल मीडिया की चमक-दमक से ऊपर हैं पारिवारिक मूल्य
दिखावे के लिए नहीं, दिल से रिश्तों को स्वीकार करें और पूरी फैमिली को साथ रखें – तभी तस्वीर भी और जीवन भी खूबसूरत बनता है।

5. पीढ़ियों के बीच की दूरी मिटाएं
बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी के साथ समय बिताने दें। यही स्नेह और संवाद उन्हें भावनात्मक रूप से समृद्ध बनाता है।

निष्कर्ष: परिवार केवल कुछ सदस्यों का समूह नहीं होता – वह जड़ों, शाखाओं और फलों से बना पूरा वृक्ष होता है। जितनी मज़बूत जड़ें होंगी, उतना ही सुंदर और फलदायी परिवार होगा।

“हमारी फैमिली” केवल एक तस्वीर नहीं, एक सोच है – जिसमें सबका सम्मान हो, सबका स्थान हो।

 

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