गुरुदीक्षा का प्रतिदान गुरु दक्षिणा कहलाता है। शिष्य गुरु को दक्षिणा देकर अपनी पात्रता, प्रामाणिकता सिद्ध करता है। एक अर्थ में दक्षिणा आहार को पचाने की क्रिया है, और एक अन्य अर्थ में जड़ों का रस पौधे तक पहुंचाकर उसे विकसित एवं फलित करने वाला उपक्रम भी है। आध्यात्मिक दृष्टि से शिक्षा के सार्थक उपयोग के लिए गुरु दक्षिणा जरूरी है। गुरु दक्षिणा दिए बिना शिक्षा पूरी नहीं मानी जाती, इसलिए राम और कृष्ण जैसे अवतारी पुरुषों ने भी गुरु दक्षिणा देकर शिष्य धर्म को निभाया।

Guru Dakshina Ki Parampara Kyo
Guru Dakshina Ki Parampara Kyo

भारतीय संस्कृति में गुरु दक्षिणा के बड़े मार्मिक उदाहरण भरे हुए हैं-एक बार गुरु द्रोणाचार्य के पास भील बालक एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए पहुंचा, तो उन्होंने शिक्षा देने से मना कर दिया। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसी से प्रेरणा पाई और नियमित अभ्यास से धनुर्विद्या में निपुणता हासिल की। एक बार गुरु द्रोणाचार्य, पांडवों के साथ वन विहार को निकले, उनके साथ एक कुत्ता भी चल दिया, जो उनसे काफी आगे निकल गया। एकलव्य का विचित्र भेष देखकर कुत्ता भौंकने लगा। साधना में विघ्न पड़ता देख एकलव्य ने कुत्ते का मुंह बंद करने के लिए ऐसे बाण चलाए, जो उसे चोट न पहुंचाएं, किंतु उसका मुंह बंद हो जाए। बाणों से बंद मुंह वाला यह कुत्ता द्रोणाचार्य और पांडवों के पास पहुंचा, तो वे आश्चर्यचकित होकर उस कुशल धनुर्धर एकलव्य के पास पहुंचे।

द्रोणाचार्य ने पूछा-

‘बेटा! तुमने यह विद्या कहां से सीखी?’

‘आप ही की कृपा से सीखा हूं गुरुदेव।’ एकलव्य ने कहा।

गुरु द्रोणाचार्य के लिए धर्मसंकट खड़ा हो गया, क्योंकि वे वचन दे चुके थे कि अर्जुन की बराबरी का धनुर्धर दूसरा कोई न होगा। यह भील बालक तो आगे निकल गया। काफी विचार कर द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा की मांग की।

एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में गुरुदेव की इच्छानुसार अपने दाएं हाथ का अंगूठा काटकर उनके चरणों में सौंप दिया।

इस पर द्रोणाचार्य ने कहा- ‘बेटा! मेरे बचनानुसार भले ही अर्जुन धनुर्विद्या में सबसे आगे रहे, लेकिन जब तक सूर्य, चांद, सितारे रहेंगे, तब तक लोग तेरी गुरुनिष्ठा को, तेरी गुरु भक्ति को याद करेंगे और तेरा यशोगान होता रहेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि एकलव्य ने अद्भुत गुरु दक्षिणा देकर साहस, त्याग और समर्पण का जो परिचय दिया, वह इतिहास में अमर रहेगा।

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