ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

गायत्री मंत्र भारतीय संस्कृति का सनातन एवं अनादि मंत्र है। पुराणों में कहा गया है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मंत्र प्राप्त हुआ था। सृष्टि निर्माण की शक्ति उन्हें इसी की साधना के तप से मिली थी। गायत्री की व्याख्या स्वरूप ब्रह्माजी ने चार वेद रचे। इसीलिए गायत्री को वेदमाता कहते हैं। शास्त्रकार इसे वेदों का सार कहते हैं-सर्ववेदानां गायत्री सारमुच्यते।

गायत्री मंत्र की श्रेष्ठता के संबंध में कहा गया है-

नास्ति गंगासमं तीर्थं न देवः केशवात् परः ।
गायत्र्यास्तु परं जप्यं न भूतो न भविष्यति ॥
– बृह‌द्योगी याज्ञवल्क्य स्मृति 10/10-11
अर्थात् गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है, कृष्ण के समान कोई देव नहीं हैं, गायत्री से श्रेष्ठ जप करने योग्य कोई मंत्र न हुआ है, न होगा।

( gayatri mantra ka mahatva )

देवी भागवत 11/21/5 में कहा गया है कि नृसिंह, सूर्य, वराह (देवपरक), तांत्रिक एवं वैदिक मंत्रों का अनुष्ठान, गायत्री मंत्र जप किए बिना निष्फल हो जाता है। सावित्री उपाख्यान अध्याय के 14 से 17 श्लोक में कहा गया है कि यदि गायत्री का एक बार जप कर लिया जाए तो वह दिन भर के पापों को नष्ट कर देता है और यदि दस बार जप लें तो दिन-रात के सब पाप नष्ट हो जाते हैं। सौ बार के जप से महीने भर के और एक सहस्र बार के जप से वर्षों के पाप क्षीण हो जाते हैं। एक लाख बार के जप से जन्म भरके, दस लाख बार के जप से पिछले जन्मों के पाप और एक करोड़ जप करने पर सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। दस करोड़ गायत्री का जप ब्राह्मण को मोक्ष प्रदान करता है। अग्निपुराण 215/8 में कहा गया है कि गायत्री मंत्र से बढ़कर जप योग्य मंत्र नहीं है और व्याहति के समान आहुति मंत्र नहीं।

गीता में भगवान् कृष्ण ने स्वयं कहा है- गायत्री छन्दसामहम। अर्थात् मंत्रों में मैं गायत्री मंत्र हूं।

गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में 24 ऋषियों और 24 देवताओं की शक्तियां समाहित मानी गई हैं। अतः मंत्रोच्चार से उन देवों से संबंधित शरीरस्थ नाड़ियों में प्राणशक्ति का स्पंदन शुरू हो जाता है तथा संपूर्ण शरीर में ऑक्सीजन का संचार बढ़ जाता है, जिससे शरीर के समस्त विकार जलकर नष्ट हो जाते हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि गायत्री मंत्र का श्रद्धा से विधानानुसार जप करने से शारीरिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जीवन में नई स्फूर्ति और आशाओं का संचार होता है। सद्विचार, सद्धर्म का उदय होता है। विवेकशीलता, आत्मबल, नम्रता, संयम, प्रेम, शांति, संतोष, आदि सद्गुणों की वृद्धि होती है और दुर्भाव, दुख आदि नष्ट होते हैं। इसके अलावा आयु, संतान, विद्या, कीर्ति, धन और ब्रह्म तेज की वृद्धि होकर आत्मा शुद्ध हो जाती है।

यह अकालमृत्यु और सभी प्रकार के क्लेशों को नष्ट करता है।

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