हिंदू धर्म में गाय को देवता और माता के समान मानकर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना मनुष्य का मुख्य धर्म माना गया है, क्योंकि उसके शरीर में सभी देवता निवास करते हैं। कोई भी धार्मिक कृत्य ऐसा नहीं है, जिसमें गौ की आवश्यकता नहीं हो। फिर चाहे वह यज्ञ हो, 16 संस्कार (षोडश संस्कार) हों या कोई अन्य आयोजन हो।

महर्षि वसिष्ठ का कामधेनु के लिए प्राणों की बाजी लगाना, महर्षि च्यवन का अपने शरीर के बदले नहुष का चक्रवर्ती राज्य ठुकरा कर एक गाय का मूल्य निश्चित करना जैसे प्रसंग यही दशति हैं कि गाय से बढ़कर उपकार करने वाली और कोई वस्तु संसार में नहीं है। यह माता के समान मानव जाति का उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता प्रदान करने वाली है। इसीलिए शास्त्र में कहा गया है गावो विश्वस्य मातरः । अर्थात् गाय विश्व की माता ही है।

Gau Seva Ka Dharmik Mahatva Kyon Hai
Gau Seva Ka Dharmik Mahatva Kyon Hai

अग्निपुराण में कहा गया है कि गायें परम पवित्र और मांगलिक हैं। गाय का गोबर और मूत्र दरिद्रता दूर करता है। उन्हें खुजलाना, नहलाना, पानी पिलाना, पुण्यदायक है। गोमूत्र, गोबर, गो दुग्ध, गो दधि, गो घृत, कुशीदक-इनका मिश्रण अर्थात् पंचगव्य सभी अशुभ अनिष्टों को दूर करता है। गो ग्रास देने वाला सद्गति प्राप्त करता है। गो दान करने से समस्त कुल का उद्धार होता है। गो के श्वास से भूमि पवित्र होती है। गाय के स्पर्श से पाप नष्ट होते हैं। पंचगव्य पीने से पतित का भी उद्धार होता है।

वेद में कहा गया है-

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां। स्वसा आदित्यानां अमृतस्य नाभिः ।
– अथर्ववेद
अर्थात् गाय रुद्रों की माता है, वसुओं की पुत्री है, सूर्य की बहन है और घृत रूप अमृत का केंद्र है।

मार्कण्डेयपुराण में कहा गया है कि विश्व का कल्याण गाय पर आधारित है। गाय की पीठ ऋग्वेद, धड़-यजुर्वेद, मुख-सामवेद, ग्रीवा इष्टापूर्ति, सत्कर्म, रोम साधु सूक्त हैं। गोबर और गोमूत्र में शांति और पुष्टि है। जहां गाय रहती है, वहां पुण्य क्षीण नहीं होते। वह जीवन को धारण कराती है। स्वाहा, स्वधा, वषट और हंतकार-यह चार गाय के धन हैं। इस गाय से सबकी तृप्ति होती है।

विष्णुस्मृति में कहा गया है कि गौओं के निवास की भूमि पवित्र होती है। गौएं पवित्र व मंगलमय हैं। उनसे समस्त लोक का कल्याण है। गायों से यज्ञ सफल होते हैं। उनकी सेवा से पाप नष्ट होते हैं। गौओं के बाड़े में तीर्थों का निवास है। उनकी रज से बुद्धि और संपदा बढ़ती है। उन्हें प्रणाम करने से पुण्य मिलता है।

स्कंदपुराण में कहा गया है कि गौओं के गोबर से घर-आंगन और देवमंदिर भी पवित्र हो जाते हैं। अथर्ववेद में कहा गया है कि गौओं के दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हृष्ट-पुष्ट होता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है।

गीता में श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि गायों में कामधेनु मैं ही हूं।

महाभारत, आश्व. में कहा गया है कि दान में दी हुई गौ अपने विभिन्न गुणों द्वारा कामधेनु बन कर परलोक में दाता के पास पहुंचती है। वह अपने कर्मों से बंधकर घोर अंधकार पूर्ण नरक में गिरते हुए मनुष्य का उसी प्रकार उद्धार कर देती है, जैसे वायु के सहारे से चलती हुई नाव मनुष्य को महासागर में डूबने से बचाती है। जैसे मंत्र के साथ दी हुई औषधि प्रयोग करते ही मनुष्य के रोगों का नाश कर देती है, उसी प्रकार सुपात्र को दी हुई कपिला गौ मनुष्य के सब पापों का तत्काल नष्ट कर डालती है।

गोदान क्यों करते हैं इसका महत्व क्‍या है ?

Gau Daan Kyun Karte Hai Mahatva Kya Hai
Gau Daan Kyun Karte Hai Mahatva Kya Hai

महाभारत, कूर्मपुराण, याज्ञवल्क्य स्मृति आदि अनेक ग्रंथों में कहा गया है कि गोदान करने वाले मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर सुखपूर्वक जीवन जीते हैं और मृत्यु के बाद स्वर्ग जाते हैं। ब्राह्मण को गाय देने के पीछे मान्यता यही है कि जब प्राणी मरकर स्वर्ग जाता है, तब उसकी राह में वैतरणी नदी पड़ती है। दान में दी हुई गाय की पूंछ पकड़कर प्राणी वैतरणी को पार कर स्वर्ग पहुंच जाता है।

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