ब्राह्मण में केवल सत्त्वगुण की प्रधानता होती है। इसीलिए उसमें सत्कर्मी को करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। चूंकि उसका स्वभाव सत्कर्मों के अनुकूल होता है, इसलिए उन्हें करने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती। भगवान् श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म इस प्रकार बताएं हैं-
शमो दमस्तपः शौच क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ॥
– श्रीमद्भगवद्गीता 18/42
अर्थात् अंतःकरण का निग्रह, इंद्रियों का दमन, धर्म पालन के लिए कष्ट सहना, बाहर-भीतर से शुद्ध रहना, दूसरों के अपराधों को क्षमा करना, मन, इंद्रिय और शरीर को सरल रखना, ईश्वर और परलोक आदि में श्रद्धा रखना, वेद शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन और परमात्मा के तत्त्व का अनुभव करना ये ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं।

इन सब गुणों व कर्मों की श्रेष्ठता के कारण ही ब्राह्मण से पूजा-पाठ कराने का विधान बताया गया है। सात्त्विकी होने के कारण ब्राह्मण पर यजमान का विश्वास आसानी से स्थापित हो जाता है, विश्वास से ही कर्म का सुफल मिलता है।
ब्राह्मण की आजीविका के संबंध में मनु ने कहा है-
षण्णां तु कर्मणामस्य त्रीणि कर्माणि जीविका ।
याजनाध्यापने चैव विशुद्धाच्च प्रतिग्रहः ॥
– मनुस्मृति 10/76
षट्कर्मों में पढ़ाना, यज्ञ कराना और विशुद्ध द्विजातियों से दान ग्रहण करना ये तीनों ब्राह्मण की जीविका के कर्म हैं।
आगे मनुस्मृति 1/88 में कहा गया है कि दान यदि प्राप्त हो जाए तो ‘अमृत’ के समान है, किंतु मांग कर दान लेना निंदनीय है।
चूंकि कोई भी कर्मकाण्ड दक्षिणा के बिना पूरी तरह संपन्न हुआ नहीं माना जा सकता, क्योंकि वेद में इसका स्पष्ट उल्लेख यूं किया गया है-
दक्षिणावतामिदमानि चित्रा दक्षिणावतां दिवि सूर्यासः ।
दक्षिणावन्तो अमृतं भजन्ते, दक्षिणावन्तः प्रतिरंत आयुः ॥
– ऋग्वेद 2/1/10/6
अर्थात् दक्षिणा देने वालों के ही आकाश में तारागण रूप चमकीले चित्र हैं, दक्षिणा देने वाले ही धूलोक में सूर्य की भांति चमकते हैं, दक्षिणा देने वालों को अमरत्व प्राप्त होता है और दक्षिणा देने वाले ही दीर्घायु होकर जीवित रहते हैं।
दक्षिणा के संबंध में कहा गया है-
मृतो यज्ञस्त्वदक्षिणः । – महाभारत शांतिपर्व 313/84
दक्षिणाविहीन यज्ञ मृतक के समान होता है।
ऋग्वेद 2/9/20 में कहा गया है कि दक्षिणा प्रदान करने वालों के ही आकाश में तारे के रूप में चमकीले चित्र हैं, दक्षिणा देने वालों को अमरत्व और दीर्घायु मिलती है।
अथर्ववेद 2/4/12 में कहा गया है कि जो व्यक्ति देवताओं के निमित्त याचित गाय एवं द्रव्य को ब्राह्मणों को नहीं देता, उसे देवता दंडित करते हैं।
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