श्रीमद्भगवद्गीता 4/7-8 में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूं। अर्थात् साकार रूप में लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं। साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूं।
यों तो हिंदू धर्म में भगवान् के असंख्य अवतारों को स्वीकार किया गया है, लेकिन उनमें से 108 अवतारों की मान्यता है। इनमें से भगवान् विष्णु ने धरती की सुख-शांति की स्थापना और सृष्टि के पालन के लिए जिन दस अवतारों को धारण किया वे निम्नानुसार हैं-

दस अवतारों के नाम:-
- मत्स्य
- कच्छप
- वाराह
- नृसिंह
- वामन
- परशुराम
- राम
- कृष्ण
- बुद्ध
- कल्कि
जानें दस अवतारों के बारे में भगवान विष्णु ने अवतार क्यों लिये?
मत्स्य या मीन अवतार: वैवस्वत मनु की प्रलय से रक्षा करने के लिए भगवान् ने मछली का अवतार धारण किया था। इसके माध्यम से बीज से वृक्ष बनने जैसा उदाहरण प्रस्तुत किया और बताया कि छोटे साधन भी उच्च उद्देश्यों के साथ जुड़ने पर महान हो जाते हैं।
कच्छप या कछुए का अवतार: विष्णु का यह अवतार कूर्मावतार के नाम से भी जाना जाता है। इसमें अमृत मंथन के लिए कछुए का रूप धारण कर अपनी पीठ पर समुद्र मंथन की सारी प्रक्रिया का भार उठाकर सहयोग और अनवरत श्रम की महत्ता बतलाई गई है।
वाराह अवतार में जब पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस ने हर लिया, तो उससे मल्लयुद्ध करके उसके आधिपत्य का शमन किया और पृथ्वी को मुक्त कराकर सर्वसाधारण को संपदा उपलब्ध कराई।
नृसिंह या नरसिंह अवतार में मानव शरीर का आधा भाग और आधा भाग शेर का बनाकर दैत्यराज हिरण्यकशिपु का वध किया। प्रह्लाद को बचाकर उसका अधिकार दिलवाया। इस अवतार में साम, दाम, दंड का ही नहीं, भेद नीति अर्थात् कूटनीति का प्रयोग किए जाने का औचित्य भी बतलाया गया है।
वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि के यज्ञ अनुष्ठान को नष्ट किया और आकाश, पाताल, पृथ्वी आदि को मुक्त कराया। असुरों की प्रसुप्त सद्भावना को जगाया और वैभव को जनहित में वितरण करने में सफलता पाई ।
परशुराम अवतार में क्षत्रियों के अत्याचारों से ब्राह्मणों और पृथ्वी को स्वतंत्र किया। पशु और पिशाच वर्ग के लोगों को न तो विजय से सुधारा जा सकता है और न शिक्षा, क्षमा से। इसलिए उनका वध किया।
राम के अवतार में रावण का वध कर श्रद्धालु जनों में मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। कष्ट सहकर भी वे धर्म धारण के प्रतिपादन में निरत रहे। इसलिए सजीव धर्म पुरुष कहलाए। असुरता हटाकर देवत्व की वृद्धि की।
कृष्ण का अवतार लेकर अत्याचारी कंस का वध किया। वे नीति पुरुष कहलाए, क्योंकि उन्होंने नीति को क्रिया के साथ नहीं, लक्ष्य के साथ जोड़ा।
बुद्ध का अवतार ज्ञान और तप के आधार पर धारण किया। पुराणों में जिस बुद्धावतार का वर्णन है, वह महाराज शुद्धोदन के पुत्र अमिताभ गौतम बुद्ध ही हैं। शांति और अहिंसा का संदेश दिया। मनुष्य को समस्त दुखों से छुटकारा मिले, भगवान् बुद्ध की शिक्षा का यही लक्ष्य था।
कल्कि को अंतिम अवतार कहा गया है, जो कलियुग में तब अवतीर्ण होगा जब संसार में अनाचार और अत्याचार अपनी पराकाष्ठा पर होंगे। इसमें अभी काफी वर्ष शेष बताए जाते हैं। इस अवतार के बाद पुनः सत्युग आएगा।
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