एक पत्थर काटने वाला मजदूर अपनी दिहाड़ी करके अपना समय बिता रहा था, पर मन ही मन असंतुष्ट था। एक दिन ऐसे ही उसे लगा कि उसको कोई शक्ति प्राप्त हो गयी है जिससे उसकी सारी इच्छा पूरी हो सकती है। शाम को एक व्यापारी के बड़े घर के सामने से गुजरते हुए उसने व्यापारी के ठाट बाठ देखे, गाड़ी घोड़ा, घर की सजावट देखी।
अब उसके मन में इच्छा हुयी कि क्या पत्थर काटते काटते जिन्दगी गुजारनी है। क्यों न वो व्यापारी हो जाए। अचानक उसकी इच्छा पूरी हो गयी, धन प्राप्त हो गया, नया घर, नयी गाडी, सेवक सेविका, मतलब पूरा ठाटबाट।
एक दिन एक बड़ा सेनापति उसके सामने से निकला अपने सैनिको के साथ, उसने देखा कि क्या बात है?
कोई कितना भी धनी क्यों न हो, इस सेनापति के आगे सर झुकाता है। मुझे सेनापति बनना है। बस शक्ति से वो सेनापति बन गया। अब वो गर्व से बीच में बने सिंहासन पर बैठ सकता था, जनता उसके सामने दबती थी। सैनिको को वो मनचाही का आदेश दे सकता था।
पर एक दिन तपती धुप में उसे गरमी के कारण उठना पडा, क्रोध से उसने सूर्य को देखा। पर सूर्य पर उसका कोई प्रभाव नहीं पडा, वो मस्ती से चमकता रहा। ये देखकर उसके मन में आया, अरे सूर्य तो सेनापति से भी ज्यादा ताकतवर है, देखो इस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है।
उसने इच्छा की कि वो सूर्य बन जाए। देखते ही देखते वो सूर्य बन गया।
अब सूर्य बनकर उसकी मनमानी चलने लगी, अपनी तपन से उसने संसार को बेहाल कर दिया। किसानो की फसल तक जल गयी, इसको देख कर उसे अपनी शक्ति का अहसास होता रहा और वो प्रसन्न हो गया। पर अचानक एक दिन एक बादल का टुकडा आकर उसके और धरती के बीच में खडा हो गया।
ओह ये क्या, एक बादल का टुकडा सूर्य की शक्ति से बड़ा है, क्यों न मैं बादल बन जाऊं। अब वो बादल बन गया।
बादल बन कर जोर से गरज कर वो अपने को संतुष्ट समझता रहा। जोर से बरसात भी करने लगा। अचानक वायु का झोंका आया और उसको इधर से उधर धकेलने लगा, अरे ये क्या हवा ज्यादा शक्तिशाली, क्यों न मैं हवा बन जाऊं।
बन गया वो हवा। हवा बन कर फटाफट पृथिवी का चक्कर लगाने लगा। पर फिर गड़बड़ हो गयी, एक पत्थर सामने आ गया। उसको वो डिगा नहीं पाया। सोचा चलो पत्थर शक्तिशाली है मैं पत्थर बन जाता हूँ। बन गया पत्थर।
पर ये भी ज्यादा देर नहीं चल पाया। क्योंकि एक पत्थर काटने वाला आया और उसे काटने लगा।
फिर सोच में पड़ गया कि ओह पत्थर काटने वाला ज्यादा शक्तिशाली है। ओह यह मैंने क्या किया। मैं तो पत्थर काटने वाला ही था !!! इतनी देर में उसकी नींद खुल गयी और स्वप्न भंग हो गया। पर फर्क था– वो अपने से संतुष्ट था।
हमें अपने अन्दर की शक्ति और क्षमता का पता नहीं होता, और जो दिखते किसी काम के नहीं, वही किसी न किसी काम के जरूर होते हैं। अपनी क्षमता को पहचानिए।
1. अपनी तुलना दूसरों से न करें!
– हर बार दूसरों को देखकर उनके जैसा बनने की चाह रखना आपको भटका सकती है।
सीख: अपनी पहचान और योगदान को समझिए।
2. जो आप हैं, वही मूल्यवान है
– कहानी का नायक अंत में यह समझता है कि वह जिस भूमिका में पहले था, वही सबसे ज्यादा शक्तिशाली और उपयोगी थी।
सीख: अपने कार्य और अस्तित्व का आदर करना सीखिए।
3. बाहरी दिखावे में शक्ति नहीं होती
– राजा, सेनापति, सूर्य, बादल सब बनकर भी आत्मसंतोष नहीं मिला।
सीख: शक्ति केवल स्थिति में नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन और संतुष्टि में है।
4. संतोष सबसे बड़ी दौलत है
– अंत में जब उसकी नींद खुलती है, वह इस सच्चाई को जानकर संतुष्ट हो जाता है।
सीख: संतोष से ही आत्मशक्ति जागती है।
5. हर व्यक्ति में एक विशेष क्षमता छुपी होती है
– कभी भी किसी को कम मत आंकिए — हर कोई किसी न किसी उद्देश्य के लिए जरूरी है।
सीख: खुद की अहमियत समझिए और आत्मविश्वास रखिए।
निष्कर्ष:
“बदलने की नहीं, खुद को पहचानने की ज़रूरत है।”
खुश रहिए, खुद से प्रेम करिए — क्योंकि आप जैसे हैं, वैसे ही अद्वितीय है।