मैं नफ़रत में यक़ीन नहीं करता
क्यूँकि मेरी अरदास में रोज़
‘सरबत का भला’ माँगा जाता है
और मेरी परम्परा
युद्ध में दुश्मन को भी
पानी पिलाने की है
मैं जातिवाद का विरोधी हूँ
क्यूँकि मैं जानता हूँ
कि पंच प्यारे भी
दलित-पिछड़ों में से थे
दर्ज़ी, नाई, भिशती, खत्री और जाट थे
और मेरे गुरु ने
उन्हें अपना गुरु माना था ।
मैं सब पर
विश्वास और भरोसे का हिमायती हूँ
क्यूँकि मैं जानता हूँ कि
दशम गुरु ने अपने चारों बेटे
और अपना पूरा परिवार खो कर भी
तमाम छल कपट, धोखे खा कर भी
अरदास में सिक्खों को
‘विश्वास दान’ और ‘भरोसा दान’
देने की बात कही है।
मैं शालीनता का पुरज़ोर हिमायती हूँ
क्यूँकि मेरी अरदास में रोज़
‘सिक्खों को मन नीवां, मत ऊँची’
यानी ऊँची सोच और विनम्रता
की दरखास्त
ईश्वर से की जाती है।
मैं सच कर्म करने से डरता नहीं हूँ
क्यूँकि मुझे सिखाया गया है
कि ‘शुभ करमन ते कबहुँ न डरूँ’
और साथ ही
‘कि निश्चय कर अपनी जीत करूँ’।
मैं धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता
क्यूँकि गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है
‘अव्वल अल्लाह नूर उपाया
कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपजया
कौन भले कौन मंदे।’