॥एक और विभाजन की ओर बढ़ते हम॥
केंद्र के स्तर पर BJP और कांग्रेस दो पार्टियां ही है। बाकी तो सब इतनी छोटी है कि केंद्र में सरकार में आने के लिए या तो इनकी समर्थक बने या फिर प्रादेशिक स्तर पर अपना नेगेटिव साइड दिखाएं।
अनारक्षित वर्ग लगातार आरक्षण हटाने की मांग कर रहा है। स्वतन्त्रता संग्राम में अनारक्षित वर्ग ने बड़े योगदान और त्याग किये हैं। अपने अपने तरीके से स्वंत्रता प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त किये थे।
दलित वर्ग ने भी अपने स्तर से संघर्ष किया था।
दलित वर्ग के लिये आज़ादी के बाद आरक्षण घोषित हुआ। कोई विरोध नही हुआ।
अब सत्तर साल के बाद अनारक्षित , जिनमे बहुत से बुद्धिजीवी, राष्ट प्रेमी है,यह देखकर परेशान है कि जिस तरह से आरक्षण का प्रयोग समाज मे हो रहा है उस से तो सैकड़ों वर्ष तक सिर्फ कुछ दलित परिवारों का उत्थान ही सम्भव है।
यदि सिर्फ एक बार आरक्षण का लाभ दिया जाए तो पूरा दलित वर्ग लाभान्वित धीरे धीरे लाभान्वित हो जाएगा। दलित वर्ग स्वयं भी इस विसंगति को महसूस करने लगा है।
अनारक्षित वर्ग यह भी देख रहा है कि योग्यता के बावजूद उसके सदस्यों को देश में रोजगार खड़ा करना असम्भव हो रहा है। एक षड्यंत्र की तरह पर्यावरण के नियमों का उपयोग उद्यमो और उद्यमिता को नष्ट करने में लगा है। अब हर कोई तो सॉफ्ट वेयर जैसा साफ सुथरा पॉश काम करने की तसीर और फितरत नही रखता। पर उसके सभी अवसर पर्यावरण बचाने में खत्म किये जा रहे हैं। साधारण सी बात है, किचन में खाना बनता है तो वेस्ट, कटिंग आदि घर में भी बचती है। पर उस वेस्ट को प्रदूषण या पर्यावरण के लिए हानि प्रद कह कर घर का किचन टी बन्द नही किया जाता। अब यदि थोड़ी सी बात और बढ़ाई जाए , और किचन क्वीन को ही इस कचरे को अंतिम रूप से विनष्टीकरण के लिये दबाव बनाया जाये तो फिर समझ लीजिए खाना बनाना बन्द। डब्बा चालू। बाहर से जो आ जाये खाने का अभ्यास कर लो या भूखे रहो। डब्बे वाले को दम दी कि पर्यावरण पर ध्यान दे तो वह भी इमोर्टेड फ़ूड की लाइन में दिखेगा। ऐसे कानूनी तलवारों के बीच मे कौन काम करेगा?
पर्यावरण सुधारने के चक्कर मे हम हर चीज इम्पोर्ट कर ने पर मजबूर हो गए है। अब इतने साफ सुथरे रहने से भी क्या फायदा?
मगर हमारे सक्षम मेम्बर गुलामों की तरह दूसरे देशों के लिए वो काम करने के लिए मजबूर है जिनके सहारे हमारी आर्थिक स्थिति को ये विदेशी कंपनियां बर्बाद कर रही हैं!
अनारक्षित वर्ग ने आरक्षण के तरीके को सही करने की ही मांग की। वो कहाँ गलत हुई। आरक्षण हटाने की मांग का विरोध तो जान पर खेल कर रोकने की बात , अकारण हमारे जन प्रितिनिधियों ने कह डाली।वे जन प्रितिनिधि होने के कारण सन्तुलित बात सार्वजनिक तौर पर कहने के लिए बाध्य हैं। समाज उंन से यह अपेक्षा भी रखता है।
क्या इस तरह की घोषणाएं करने के स्थान पर कुछ ठोस रोजगर न खोले जाते? 100 पड़ निकलते तो 50-50भी बंट जाते। दलित वर्ग भी पढ़लिखकर अवसरों के अभाव को देख रहा है। विदेशी कंपनियां सर्वाधिक खर्चा देती हैं पर शायद ही किसी दलित को काम देती हैं।अगर देखा जाए तो जो लाखों करोड़ों की सैलरी ये कंपनियां देश का शासन प्रशासन चलाने के लिये अपने कर्मचारियो की देती है, इन पर हमारे उस युवा वर्ग का भी अधिकार बनता है जिसे कोई नियमित तो क्या अनियमित रोजगार करने में भी तमाम मुश्किलें डॉय जाती हैं!
SC ST एक्ट के जरिये जो ATROCITY सवर्ण झेलता है उस से बचत कु ही मांग की गयी थी। एक्ट को खतना करने की बात तो नही की थी।समाज और कानून से वाकिफ सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के ATRICIOUS पक्ष पर चिंता जाहिर की थी। पर सरकार ने अन्यायी बनते हुए कानून को दुबारा उसी अन्यायी रूप में लगाना पसन्द किया! क्या सरकार के पास न्याय संगत आधार है?
इन अन्यायी फैसलों के चलते अनारक्षित वर्ग , समाज में अपना स्थान अलग बनाने के लिए मजबूर हो रहा है। यानी एक और विभाजन, जिसे हठ या जी घ0भी मजबूरी है उसे त्याग कर बचाया जा सकता है।
इस विभाजन से दोनों शीर्ष पार्टियों के असंतुष्ट सदस्य एक अलग स्वर्ण पार्टी बनाना पसन्द करेंगें।
क्या समाज का यह विभाजन रोका नही जा सकता?
(Dr.AnilTrivedi)
04.09.2018